व्यस्था सत्ता से नहीं विचारों से बदल सकता है! /प्रसिद्ध यादव।
धर्म के नाम पर पागल न बनें!
राज्य के एक संवैधानिक प्रमुख सीएम और पर्यटन मंत्री मंदिर में चले गए ढोंगियों हाय तौबा मचा रखा है।सवाल है कि देश में किसका कानून चलेगा?पोंगा पंथियों, ढोंगियों, परजीवियों की या देश की संविधान की? तत्क्षण ऐसे ढोंगियों को सभी पूजा स्थल से बाहर कर देना चाहिए। कानून बड़ा है कि ढोंग?
धर्म के आर में किसका धंधा चलता है?कभी सोचा है? नही तो एकबार सोच लीजिए। कथावाचक से लेकर शादी और श्राद्ध तक पैसों का खेल होता है।इसमें सिर्फ भौतिकवाद ,बाजारवाद है,लेकिन दिखाया जाता है भगवान को।मंदिर से लेकर ग्रह गोचर तक सिर्फ और सिर्फ पैसा है। आरती की थाली से लेकर महामृत्युंजय मंत्र के जाप तक पैसों की खनक सुनाई पड़ती है। एकादशी, अमावस्या, पूर्णिमा की तिथि बताने के बदले भर झोली अनाज अलग से।ऐसे परजीवियों के पेट सटके हुए देखें है।नही न। सब के तोंद बाहर फेंके हुए हैं। आपके पड़ोसी दवा के बिना मरते होंगे, खाना भरपेट नही मिलता होगा,निरक्षर होंगे।कभी उधर दृष्टि गयी है।नही।इसे ही धर्म के धंधा में पढ़े लिखे अंधा कहते हैं। कभी हार्ड वर्क करने वाले में इन परजीवियों को ढूंढना नही मिलेगा।क्यों?क्योंकि धर्म के अंधे लोग इसे ऐसोराम के व्यवस्था कर दिया है। खुद को समाजवादी, परिवर्तनवादी, क्रांतिकारी कहने वाले को देखता हूँ तो लगता है कि ऐसे लोगों से कुछ होने वाला नही है।अगर धर्म की ढकोसला को सम्झना है तो पेरियार ,अम्बेडकर, ललई यादव के विचारों को पढ़ें,कबीर को, प्रेमचंद को पढ़ें आंखों की पट्टी खुल जाएगी।धर्म के नाम पर डराया जाता है, पाखंड किया जाता है और लोग डरते हैं कि कुछ अनिष्ट न हो जाये।यही डर गुलाम बनाये हुए हैं।लोग भेड़िया चाल में चल रहे हैं।बुद्ध कहते थे-ठहरो!सोचो!तर्क करो!धर्म के नाम पर माथा पटकना समय और धन दोनो की बर्बादी है।सत्ता बदलने से ज्यादा जरूरी इन विचारों को बदलना है।जब विचार बदल जाएंगे तो सत्ता ,व्यवस्था खुद बदल जाएगी।अगर विचार नही बदला तो सत्ता बदलकर भी व्यवस्था नही बदल सकते हैं।
Comments
Post a Comment