विकास का पैमाना जाति, धर्म नहीं!आय ,आयु और शिक्षा है।/प्रसिद्ध यादव।
न्याय के साथ विकास हो! सबको समान अवसर प्राप्त हो!
मानवीय विकास का पैमाना प्रति व्यक्ति आय, जीवन प्रत्याशा और साक्षरता है।मानव का विकास एक सतत प्रक्रिया है।सभ्यता काल से ही मानव नये नये अविष्कार करते आ रहा है। आग,पहिया, तीर धनुष ,हल ,कुदाल, बरछी भाला आदि शुरुआती दौर था।जैसे जैसे मानव का बौद्धिक क्षमता विकसित करते गया, मानव ऊंचाइयों को छूते गया।चाहे समुद्र की गहराई हो या चन्द्रमा पर कदम रखना हो । रेडियो, टेलीविजन, टेलीफोन ,कम्प्यूटर, इंटरनेट की खोज जीवन को आसान बना दिया।कृषि में बढ़ती पैदावार,मेडिकल के क्षेत्र में अनेक जीवन रक्षक उपकरणों, दवाइयों की खोज आदि।ये सभी विज्ञान की देन है। फिर आज विज्ञान के बदले अंधविश्वासों के प्रति झुकाव क्यों? यही आडम्बर ने मानव को वर्णव्यवस्था में बाँटक जातिव्यवस्था कायम किया ।जातिव्यवस्था मानव को पशु से बदतर बना दिया।जाति तोड़ो का नारा दिया गया, लेकिन आज भी शादी व्याह जाति गोत्र से नही निकल पाये हैं।अगर कोई लड़का लड़की दूसरे जाति धर्म में शादी कर लें तो फिर मानो भूचाल आ जाता है।ऑनर किलिंग से लेकर खाप पंचायत तक शुरू हो जाता है।जातिव्यवस्था की दाग मनुसंहिता से मिलती है।जातिव्यवस्था रंगभेद में बदल गई।यह रंगभेद पूरी दुनिया में देखने को मिला।काले लोगों के साथ पाशविक व्यवहार किया जाता था। मानव अपने बुद्धि का उपयोग औपनिवेशिक शासन के रूप में करना शुरू कर दिया।मालिक और नॉकर का दर्जा शुरू हो गया। मानव का खूब शोषण,दोहन किया गया। यही शोषण क्रांति का रूप लिया और अच्छा साम्राज्य धराशायी हो गया।समाजवाद का जन्म हुआ, जहाँ न कोई छोटा न बड़ा ,हो ।साम्यवाद जिसमें न कोई धनवान, न धनहीन हो ।समय बदलता रहा,फिर नॉकरशाह का जमाना आया,लोकतांत्रिक देश बन,राजनेता शक्तिशाली हो गए। अब सत्ता के लिए राजनेताओं द्वारा तरह तरह के हथकंडे अपनाए जाने लगे और सत्ता हथियाने की होड़ लग गई। सत्ता के केंद्र में जाति ,धर्म हावी हो गया, जो इसका जितना इस्तेमाल किया वो उतना बड़ा राजनेता बन गया, लेकिन जनता और व्यवस्था वही के वही ।कल भी शोषक थे ,आज भी है।इससे बचने का उपाय बौद्धिक विकास है और यह आता है शिक्षा से।जहां शिक्षा का स्तर ऊंचा है वहां विकास है, नई उड़ान है। अब सवाल है कि किस वर्ग का कितना विकास हुआ और अगर कोई उपेक्षित है तो क्यों ?इसके वजह क्या है? सरकार के पास इसकी रणनीति क्या है? गरीबी हटाओ अभियान कई दशक पहले शुरू हुआ था लेकिन परिणाम जो अमीर था वो अमीर होता चला गया और गरीब गरीब। देश में संसाधनों का आसमान वितरण और इसमें सबसे अधिक भूमि में है। आज जो खेती करता है, उसके पास जमीन नही है और जिसके पास जमीन है वो खेती नही करता है। ये खेतिहर, जमींदार या तो मुगलों की चापलूसी कर के बने या अंग्रेजों के। देश में जमींदारी उन्मूलन हुआ,लेकिन भूमि सुधार आज तक नही हुआ ।ये असमानता मानव के विकास में बहुत बड़ी बाधा है।अगर इसे ठीक कर लिया जाता है तो बहुत हद तक समस्या दूर हो जाएगी।इसके अलावा यहां के न्यायपालिका में ,मंदिरों में, व्यवसाय में कुछ खास वर्ग का आधिपत्य है। कठिन मेहनत मजदूरी देश के 85 फीसदी के हिस्से में और मुफ्त की मलाई 15 फीसदी के हिस्से में। 15 फीसदी का आशय किसी जति से नही है, बल्कि साधन संपन्न लोगो से है।निर्धन हर वर्ग ,जाति में है और इससे इनकार नहीं किया जा सकता है जो बहुजनों आर्थिक रूप से मजबूत हो गया वो भी किसी सामंती से कम नही है, इसके भी रौब ,तानाशाही कम पीड़ादायक नही है। सवर्णों में भी कुछ अत्यंत निर्धन हैं, उनके साथ भी समुचित न्याय करने की जरूरत है। आज देश में दो ही वर्ग रह गया है अमीर और गरीब।इसके खाई को पाटना है न कि किसी जाति,धर्म विशेष से वैर रखने की जरूरत है।
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