छठ पूजा का वैज्ञानिक दृष्टिकोण!प्रसिद्ध यादव।
हमारे सनातन धर्म में जितने भी पर्व त्योहार बनाये गए हैं, सबका अपना वैज्ञानिक दृष्टिकोण ,आधार है।लेकिन आज त्योहारों में इतने आडम्बर और अंधविश्वास केपरत चढ़ गए हैं कि इसके मूल तत्वों को समझ ही नहीं पाते हैं। मानव शरीर में रंगों का संतुलन बिगड़ने से कई तरह के रोग होने का खतरा रहता है। ऐसे में सुबह के समय सूर्यदेव को अर्घ्य देने से शरीर पर पड़ने वाले प्रकाश से रंग संतुलन बना रहता है। यह बहुत कुछ भौतिक विज्ञान के प्रिज्म के सिद्दांत से संबंधित है। सूर्य के प्रकाश और इस पर रंगों के प्रभाव के कारण शरीर की रोग प्रतिरोधात्मक क्षमता बढ़ जाती है। इसलिए चर्म रोगों से ग्रसित लोग निर्मल काया होने की चमत्कार मानते हैं।साथ ही सूर्य की रोशनी से मिलने वाला विटामिन डी भी शरीर को मिलता है। सूर्य उपासना की अनेक पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं और इसकी पूजा के लिए बड़े बड़े तालाबों, जलाशयों का निर्माण किया गया, जो सिंचाई के साथ साथ जल संचय का प्रमुख साधन है।इस पर्व में कहीं भी ऊंच नीच, जातिवाद का कोई भेदभाव नहीं होता है, सब के लिए एक ही नियम होता है और सभी के प्रति श्रद्धा भाव समान होता है।
विज्ञान की दृष्टि से देखें तो दीपावली के बाद सूर्य का ताप पृथ्वी पर कम पहुंचता है। इसलिए व्रत के साथ सूर्य के ताप से ऊर्जा का संचय किया जाता है। इससे शरीर सर्दी में स्वस्थ रहता है। इसके अलावा ठंड के मौसम के आने से शरीर में कई तरह के परिवर्तन भी होते हैं। खास तौर से पाचन तंत्र पर इन परिवर्तनों का बड़ा प्रभाव पड़ता है। छठ पर्व का 36 घंटों का उपवास पाचन तंत्र के लिए लाभदायक होता है।
छठ पूजा प्रकृति की पूजा है। छठ पूजा के मौके पर नदियां, तालाब, जलाशयों के किनारे पूजा की जाती है, जो सफाई की भी प्रेरणा देती है। यह पर्व नदियों को प्रदूषण मुक्त बनाने की प्रेरणा देता है। इस पर्व में केला, सेब, गन्ना,गेंहू,चावल,बांस के बने दउरा, कोलसूप, मिट्टी के दिया ,गुड़,घी सहित कई फलों की प्रसाद के रूप में पूजा होती है, जिनसे वनस्पति का महत्व भी समझ आता है। आज के बदलते परिवेश में हम इसकी मूल कारण को भूल कर तालाबों, जलाशयों को भर रहे हैं, छठ के पारम्परिक गीतों की जगह डीजे सुन रहे हैं, जो कहीं न कहीं इसकी महिमा से दूर होते जा रहे हैं।
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