ईमानदार होना जरूरी क्यों? भ्रष्टाचारियों की जगह सिर्फ सलाखों में है-प्रसिद्ध यादव।

   


  ईमानदारी के लिए शपथ दिलाई जाती है।चाहे वो जितने भी बड़े पद पर क्यों न हो।शायद बेईमानी,रिश्वतखोरी,हेराफेरी करते समय अंतरात्मा धिक्कारे, लेकिन यह  एक दिनचर्या में समाहित हो गया है।आखिर ये सब किसके लिए?अपने वारिसों के लिए और समाज मे बैभव,ऐश्वर्य ,विलासिता आदि  के लिये । सबसे बड़ी दिलचस्प है कि भ्रष्टाचार के बचाव के लिए ऐसी काल्पनिक कहानियां ,नैरेटिव तैयार करते हैं कि लगता है कि कितना सत्यवादी है? कोई कोई धर्म के चोला  धारण कर लेता है, कुछ दलालों को अपने पक्ष में प्रचार प्रसार करने के लिए वोकल तैयार कर लेता है लेकिन, अन्तोगत्वा इससे उसको कोई फायदा नहीं होता है, सारी जिंदगी सलाखों में गुजर जाती है।कभी सोचा है कि अगर देखा देखी यही प्रवृत्ति सभी में आ गई।तब क्या होगा?अराजकता की स्थिति आ जायेगी।लेकिन कुछ लोगों को मानना है कि सब ऐसा नही कर सकते क्योंकि जिनके हाथों में शक्ति या जिम्मेवारी होती है वही भ्रष्टाचार कर सकता है ।जिसके पास ताकत नही है वही ईमानदार रहने की दलीलें देते रहते हैं।सम्भवतः ऐसा हो भी सकता है,लेकिन आम आदमी हथियार तो उठा सकता है।लूट खसोट शुरू कर दे,अपहरण,हत्या पर उतारू हो जाये तब क्या होगा?तब कहेंगे विधि व्यवस्था खराब हो गई।आम आदमी को जीना दूभर हो गया ।ऐसा यदा कदा देखने को मिलता है।इसके जिम्मेवार भटके हुए लोग ही नही है बल्कि पढ़े लिखे देश के जिम्मेवार लोग है जो कुर्सी की आर में चांदी काट रहें हैं।ऐसे लोगों को नक्सली गला काट दे तो क्या गुनाह है।तब बात आती है कानून अपने हाथ मे लेने का तो यह  अधिकार किसी को नही है।यह सही है फिर रिश्वत लेना  कैसा  विधि सम्मत काम है?भ्रष्ट लोगों की धारणा है कि जब पकड़े जाएंगे तब देखा जाएगा ।तबतक मालामाल हो ही जायेंगे और कानूनी दांव पेंच में जीवन गुजर जाएगी ।कभी सोचा है देश के शहीदों के प्रति,उनकी अमूल्य कुर्बानियों के प्रति।अगर  भ्रष्टाचारी  की तरह कोई सोचता तो आज भी गुलाम देश मे बैल की तरह कोल्हू  पडते रहते ।भ्रष्टाचारी देश को दीमक की तरह खोखला कर रहा है और ये अपनी किसम्मत खुलने के घमंड में इठला रहे हैं। ऐसे तत्वों को पहचान कर नंगा करने की जरूरत है।यह आजादी के जंग से कम महान काम नहीं है।


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