भ्रष्टाचार बनता सामाजिक मूल्य !-प्रसिद्ध यादव।

भारत 


में भ्रष्टाचार अब सामाजिक मूल्यों का रूप ले लिया है।भ्रष्टाचारियों के आगे पीछे चलने के लिए लम्बी कतार लगी हुई है।अब यह सामाजिक मर्यादा का रूप ले लिया है।बड़े ही अदब के साथ इनके नाम लिये जा रहे हैं।बिहार सरकार भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति घोषणा कर चुकी है लेकिन भ्रष्टाचारियों पर कोई प्रभाव नहीं हो रहा है। इसका वजह ऊपर से नीचे तक का तालमेल होना है। नित्य नये जिम्मेवार लोगों द्वारा भ्रष्टाचार की खबरों से यही लगता है कि  किसी कार्य को मोनेटरिंग करने वाले भी इसके हिस्सा बने हुए हैं। राहत भरी बात यह है कि भ्रष्टाचारियों पर सरकार नकेल कस रही है फिर भी नाकाफी है।  21 दिसम्बर 1963 को भारत में भ्रष्टाचार के खात्मे पर संसद में हुई बहस में डॉ राममनोहर लोहिया ने कहा था सिंहासन और व्यापार के बीच संबंध भारत में जितना दूषित, भ्रष्ट और बेईमान हो गया है उतना दुनिया के इतिहास में कहीं नहीं हुआ है।    सामाजिक प्रतिमान जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में पाए जाते हैं। इनकी संख्या अनगिनत है।खाने-पीने, उठने, नृत्य करने, वस्त्र पहनने, हंसने, रोने, सोने, गाने,लिखने, बोलने, स्वागत- सत्कार करने, विदा करने आदि से संबंधित सामाजिक प्रतिमान पाए जाते हैं। यह हमारे व्यवहार के पथ प्रदर्शक है।

समाज में मान्यता प्राप्त अथवा स्वीकृत व्यवहार की प्रणालियां हैं। यह दैनिक जीवन के व्यवहार के वे प्रतिमान है जो नियोजित अथवा बिना किसी तार्किक विचार के ही सामान्यतः समूह में अचेतन रूप में उत्पन्न हो जाते हैं। जनरीतियां या लोकरीतियां हमें सामाजिक सांस्कृतिक वातावरण में रहने की कला सिखलाती है।अब यही कला भ्रष्टाचार की कला को निपुण कर रही है और ईमानदार उल्टे पग पग धोखा खा रहा है।


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