सत्य पथ पर अग्रसर चलता चल (कविता )-प्रसिद्ध यादव।
सत्य पथ पर अग्रसर चलता चल!
न परवाह कर किसी की ।।
कौन साथ है ?
कौन छूट गया ?
किसे अच्छा लगा ?
किसे बुरा ?
नदियों की तरह अविरल
बहता चल!
सत्य पथ पर अग्रसर चलता चल ।
ब्रह्मांड में कोई जन्मा नहीं
जो सत्य पथिक को रोक दे!
कोई उसके नज़रों को झुका दे
ऐसा कोई नजर हुआ नहीं ।
कोई रास्ते मुश्किल हो
ऐसा कोई डगर नहीं ।
अंधेरे में दीप बन
रौशनी बिखेरता चल ।
सत्य पथ पर अग्रसर चलता चल।
न चाह महल ,राजभवन की
न सर पर ताज ,न सिंहासन की
बस !मानव मात्र बने रहना
न चिंता क्या होगा कल ?
सत्य पथ पर अग्रसर चलता चल!- प्रसिद्ध यादव।
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