हँसते -हँसते कट जाये रास्ते ! (व्यंग्य ) -प्रसिद्ध यादव।
हँसते हँसते कट जाए रास्ते, जिंदगी नाम है इसी का ..यह गीत अपने जरूर सुने होंगे लेकिन वास्तविक जीवन में बहुत कम ही ऐसा होता है। सुबह के मॉर्निंग वॉक में जब हम मित्रों के साथ महम्मदपुर ,जमालुद्दीन चक मोर धर्मपुर निकलते हैं, बहुत लोग मिलते हैं। गुड मॉर्निंग, नमस्कार, जय श्री राम, वालेकुम सलाम आदि होता है, देश दुनिया, राजनीति की बात होती है लेकिन जो महम्मदपुर के बुजुर्ग लक्ष्मण शर्मा मिलते हैं तो बिना हंसे हुए कोई नही रह सकता है। इनके पूरे टीम में रामविजय शर्मा, पूर्व सरपंच संतोष शर्मा, मिथलेश शर्मा आदि रहते हैं। शर्मा जी उम्रदराज है लेकिन मुझे भाई ही कहते हैं, मुझे बुरा लगता है। मैं चाचा कहता हूं तो उनको बुरा लग जाता है। अब लाचारी में हमदोनों भाई -भाई हो गए।यहां तक तो ठीक है लेकिन रास्ते में कब किसको क्या बोल जाएं,ऊपर वाले भी नही जानते हैं। आज सुबह मिले अभिवादन किया उधर से बोले -प्रसिद्ध भाई राते.... अब हम और अर्जुन जी हंसते हंसते लोटपोट हो गये।उनके साथ वाले भी। मुझे कुछ बोल दें चलेगा लेकिन महिलाओं को कुछ बोल दिया तो मुश्किल हो जाएगी। एकदिन एक महिला को टोक दिए -का मैडम !कहीं गेल थीं का?बड़ा दिन पर आज दर्शन हुआ। महिला मेरा हिसाब किताब रखते हैं का? मैके गयी थी ।अब बोलिये? शर्मा जी- बस यही चाहते हैं कि स्वस्थ्य रहें, खुश रहें। मेरा कोई हिसाब किताब रखे न रखे हम सब के हिसाब किताब रखने के लिए ही आये हैं। हंसती हुई चली गयी। एकदिन दूसरी महिला को टोक दिया-मैडम ! तबियत ठीक है न! काहे तो लतुआयल हैं? महिला-कुछ उम्र का खयाल रखें। प्रत्युत्तर में बोले-लक्ष्मण शर्मा को चाहे जो दुर्गति बेइज्जती हो जाये लेकिन हम चुप नहीं रहेंगे। इनके शिष्य बढ़ते जा रहे हैं खगौल से गुप्ता जी ,शर्मा जी ,जमालुद्दीन चक से कई लोगों की टोली बन गई है लेकिन सबसे ज्यादा मुझे ही ट्रोल करते हैं। इसे हम खुदक़िस्मती समझते हैं ,सौभाग्य समझते हैं कि राह चलते निश्छल मन से ,पवित्र मन से लोगों को हँसने हंसाने की काबिलियत है वरना आज लोग जलेबी की तरह मुंह लटका के घूमते रहते हैं। मैं बस व्यंग्य कहानियां लोगों को सुनाता हूँ, प्रतिदिन लोग एक दूसरों की प्रतीक्षा करते हैं। बीच में मुरारी शर्मा जी कभी आ गए तो सोने पर सुहागा लग जाता है। जमालुद्दीन चक के एक जनाब महतो जी है ।मेरे दोस्त के बहनोई है।हम भी ट्रोल कर देते हैं।वे प्रतिदिन महम्मदपुर दूध लाने जाते हैं।मैं एक दिन बोला-पूरा पंचायत लिख दें तब मन भरेगा क्या ? मुस्कुरा कर चले जाते हैं। कभी मित्र राजू शर्मा टिका चंदन लगाए मिल जाते हैं, दूरदृष्टि कमजोर है लेकिन जब हम जोर से आवाज देंगे तो मुस्कुराए बिना नहीं रहते। जमालुद्दीन चक के मित्र भोला यादव मेरा विशेष ख्याल रखते हैं और सलाह देते हैं। इनका अभिवादन बुद्धम शरणम गच्छामि होता है।यही के दयानंद ,अवधेश भैया और गांव के अर्जुन जी मेरे सहचर हैं। यही अपनापन सकून देता है।
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