भारत में कितना निर्भीक व स्वतंत्र पत्रकारिता!-प्रसिद्ध यादव।
राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर बधाई!
भारत में आज अगर आप पत्रकारिता के नाम पर पीआर सत्ताधारी व विपक्ष का करते हों, तो फिर आपकी जिंदगी न सिर्फ आराम, बल्कि विलासिता के साथ भी गुजर सकती है। लेकिन अगर आप सचमुच पत्रकारिता करने लगें, तो उसमें जोखिम है। एक ताजा अध्ययन रिपोर्ट में बताया गया है कि मई 2019 से इस साल अगस्त के बीच भारत में पत्रकारों पर 256 हमले हुए। भारत में पत्रकारों को फर्जी मामलों में गिरफ्तारी से लेकर हत्या तक कई तरह की हिंसा झेलनी पड़ी है। इसलिए अध्ययन रिपोर्ट कहती है कि भारत में पत्रकारिता एक खतरनाक पेशा बन गया है। पोलीस प्रोजेक्ट ने अलग-अलग विषयों की कवरेज के दौरान हुईं घटनाओं को इकट्ठा किया है। इसके मुताबिक जम्मू कश्मीर में 51, सीएए कानून के विरोध प्रदर्शनों के दौरान 26, दिल्ली दंगों के दौरान 19 और कोविड मामलों की कवरेज के दौरान 46 घटनाएं हुईं। किसान आंदोलन के दौरान पत्रकारों के खिलाफ हिंसा की अब तक 10 घटनाएं हो चुकी हैं। बाकी 104 घटनाएं पूरे देश के दौरान अलग-अलग विषयों और समय से जुड़ी हैं। भारत में इस समय कई पत्रकार जेलों में बंद हैं। केरल के पत्रकार सिद्दीक कप्पन को पिछले साल अक्टूबर में उस वक्त गिरफ्तार कर लिया गया था, जब वह उत्तर प्रदेश के हाथरस में हुए एक बलात्कार और हत्या के मामले की खबर के सिलसिले में यूपी गए थे। कप्पन तभी से आईपीसी की धारा 153-ए (समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना), 295-ए (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना), 124-ए (देशद्रोह), 120-बी (साजिश), और यूएपीए के तहत जेल में हैं। इसके पहले पेरिस स्थित संस्था रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स की एक रिपोर्ट में भी भारत को पत्रकारिता के लिए दुनिया के सबसे खतरनाक देशों में शामिल किया गया था। संस्था के 2021 वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत को 180 देशों में 142 स्थान पर है, जो मीडिया स्वतंत्रता की खराब स्थिति को जाहिर करता है। आज कौन कब पत्रकार बन जाये कहना मुश्किल है।कितने लोग इसके तकनीकी व व्यवहारिक प्रशिक्षण लिए है ?ये कहना मुश्किल है। जुगाड़ लगाकर बड़े बड़े बैनरों में काम कर रहे हैं लेकिन वे क्या रिपोर्टिंग करते हैं?यह कोई देखने वाला नही है। मीडिया के जिम्मेवारियों पर सीजेआई एनवी रमना ने कहा कि वर्तमान समय में जजों के फैसलों का मीडिया ट्रायल हो रहा है। कुछ लोग तो एजेंडा के तहत काम करते हैं। वर्तमान दौर में प्रिंट मीडिया थोड़ा जिम्मेदार जरूर है, लेकिन इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया अपनी जिम्मेदारी भूल गए हैं। उन्हें अपनी जिम्मेदारी खुद तय करनी होगी।
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