सच बोलने पर पाबंदी है।- प्रसिद्ध यादव।
सच बोलना, लिखना अब सब के वश की बात नहीं रही। जो भी सत्य बोलने का चेष्टा कर रहा है, वो सरेआम बेइज्जत हो रहा है और उसके साथ लोग खड़े होकर अपना नफा नुकसान नहीं करना चाहते हैं। तर्क कुतर्क से हार रहा है, सच झूठ से ,विज्ञान पाखंड,अंधविश्वास से। जिन्हें सच बताने ,दिखाने की जिम्मेवारी मिली हुई है वो दिन रात झूठ के साये में रहकर झूठ बता रहे हैं। झूठ अगर कोई कमजोर बोले तो उसकी तुरन्त बाट लग जाती है लेकिन झूठ बोलने वाले शक्तिशाली है तो फिर उसके हाँ में हाँ करने वाले कि तांता लग जाती है। आज सच स्वीकार नहीं है।न सच सुनना पसंद है, न सच बोलना,न सच जानना। पहले झूठ बोलने वाले आंखें झुकाकर बोलते थे अब सीने ठोक कर बोलते हैं। कोई कोई झूठ बोलने वाले अपनी छाती की नाप भी बता रहे हैं।झूठ,मिथ्या से जुमला बन गया है। झूठ की इतनी धाक हो गई है कि सच दुबक गया है। सच बोलने वाले के जीभ काटने से लेकर सर कलम करने की बोली लग रही है, कुछ सलाखों के अंदर हैं तो कुछ परलोक भी चले गये। सच बोलना जीवन को खतरे में डालने जैसा है। बड़ी साहसी लोग ही सच बोल रहे हैं। आस्था ,धर्म के नाम पर सच स्वीकार नहीं है तो कैसी आस्था और कैसा धर्म? हम विदेशों में कहते हैं कि हम युद्ध की नहीं,बुद्ध की धरती से आये हैं लेकिन बुद्ध के विचारों को नहीं मानेंगे ,तर्क,विज्ञान को नहीं मानेंगे ,क्योंकि सच से पोल खुल जाती है, चेहरे का नक़ाब उतर जाता है। जो जोखिम उठाकर सच बोल रहे हैं, उन्हें सलाम!!
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