जबतक तोड़ें नहीं,तबतक छोड़ें नहीं !- प्रसिद्ध यादव।

  

संघर्ष के पर्यायवाची माउंटेन मैन दशरथ मांझी  के  संघर्ष से प्रेरणा लेने की जरूरत है। वे " जबतक तोड़ेंगे नहीं,तबतक छोड़ेंगे नहीं " के साथ पहाड़ काटते गये और सीने चीरकर रास्ते बना दिया। आज भी देश में निचले पायदान के लोगों को बढ़ने के लिए अनेक चट्टान अवरोधक बने हुए हैं। इसे तोड़ना होगा ,हटाना होगा। आज भी देश में धर्म के नाम पर कैसे नंगा नाच हो रहा है, जानने की जरूरत है। धर्म की आर में किसका शोषण हो रहा है और कौन फलफूल रहा है, समझने की जरूरत है। बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर प्रसाद रामचरित मानस के कुछ चौपाइयों पर आपत्ति दर्ज कर दिया तो धर्म के ठेकेदारों ने पुतला दहन से लेकर जीभ काटने का फरमान जारी कर दिया। ये ढोंगियों यही तो चाहते हैं कि धर्म के नाम पर फसाद होता रहे। रामचरित मानस कोई पढ़े नही पढ़े,उसके चौपाइयों को जाने या न जाने क्या फर्क पड़ता है? मनुस्मृति, रामचरित मानस,   बंच     थॉट्स ऑफ  है क्या ? इसपर माथापच्ची करने से अच्छा है कि ऐसे गैंगों से दूर रहें और जो देश के सामने विकट समस्या है, उसे उजागर करें,उसके लिए लड़ें।बेरोजगारी, महंगाई, द्वेष, घृणा अशिक्षा के खिलाफ लड़ने की जरूरत है। वंचित समाज अपने हित अनहित को समझे । स्मरण के लिए जान जाएं कि देश रत्न डॉ राजेंद्र बाबू जब देश के प्रथम राष्ट्रपति के लिए चुने गए थे तो पोंगा पंडितों ने  शास्त्र उठाकर राजेन्द्र बाबू की जाति की कुंडली खंगालने लगे और वे लोग इस निर्णय पर पहुंचे की कायस्थ पिछड़े वर्गों में आता है और ये राष्ट्रपति पद के गरिमा के विरुद्ध है। करीब 101 पोंगा पंडित  काशी बनारस में राजेंद्र बाबू के खिलाफ  जल समाधि के लिए बैठ गए ।पंडित नेहरू को मालूम हुआ वे समझाने आये तब पोंगा ने फ़रमान जारी किया कि हम सभी ब्राह्मणों को गंगा जल से चरण धोकर उसे पिये तब राष्ट्रपति पद की गरिमा बचेगी। न चाहते हुए भी देश की हालत को समझते हुए नेहरू के कहने पर जाति की ज़हर को पिये।ऐसे कुशाग्र बुद्धि वाले के साथ ऐसा कहने और करने में तनिक भी शर्म नहीं आई उससे कोई क्या उम्मीद कर सकता है। एकलव्य का अंगूठा काटना हो,शम्बूक की हत्या से भी समझ नहीं आता है।वर्तमान की बात करें तो जगदेव बाबू की शहादत क्यों और कैसे हुई? जानने की जरूरत है। शहीद भगत सिंह नास्तिक क्यों थे?वे कहते थे कि एक लड़ाई हम अंग्रेजों से लड़ रहे हैं दूसरी लड़ाई जेल से निकलने के बाद ब्राह्मणवादियों से लड़ेंगे। दूसरी लड़ाई लड़ने की बात नही कहे होते तो शायद फांसी भी नही होती। देश के सर्वोच्च संस्थाओं पर कौन काबिज है?देश की संपदा किसके पास है?कभी सोचा है? जय श्री राम, के आर में कौन क्या खेल खेल रहा है,ये  समझिए।राजनीति दल चाहे पक्ष या विपक्ष हो उसे इन गंभीर मुद्दे पर कितनी दिलचस्पी है ये चिंतन करने का बिषय है। दशरथ मांझी की तरह निरन्तर जबतक रास्ते नही मिल जाये आगे बढ़ने के लिए पत्थरों पर प्रहार करना होगा, जो भटके हुए लोग कुल्हाड़ी में बेंत बने हुए हैं, उन्हें समझना होगा,अपने साथ लाना होगा कि तेरे कारण ही हम वंचित रूपी बृक्ष कट रहे हैं और खुद तुम भी .  महात्मा बुद्ध, से लेकर संत कबीर ,पेरियार, ज्योति बाई फुले, सावित्री बाई, ललाई सिंह यादव और भीमराव आंबेडकर इस संघर्ष को आगे बढ़ाएं। हमें ऐसे महापुरुषों के जीवन के संघर्ष, त्याग तपस्या से शिक्षा लेनी चाहिए।प्रगतिशील ब्राह्मण लेखकों ने भी अंधविश्वास, ढोंग पर कलम चलाये हैं। आचार्य रामचंद्र शुक्ल, रामधारी सिंह दिनकर जैसे साहित्यकारों के साहित्य से सीखने की जरूरत है। साहित्य की आलोचना एक विधा है और इसपर किसी को एतराज न होकर तर्कशील होना चाहिए।

Pl sheyr in all groups.


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