भाषा अर्जन करने की क्षमता बचपन से ही बच्चों में निहित होती हैं! - नोम चोम्स्की ।
आप देखते हैं कि छोटे बच्चे किसी बात को बहुत जल्द नकल कर लेता है। घर के लोग प्रायः जिस भाषा का उपयोग करते हैं, बच्चे भी उसी भाषा में बोलते हैं। अगर आप घर में राधे राधे बोलेंगे तो बच्चे भी यही बोलेंगे । अगर गाली गलौज देंगे तो बच्चे भी यही बोलेंगे।अब सोचना आप को है की घर के बच्चे कैसे भाषा का प्रयोग करें। कोई सज्जन के बोलने के आगे और पीछे गाली जैसे अलंकार के काम करता है उन्हें पता नहीं चलता है कि वे गाली देते हैं। अरे सा .. ,नही सुना सा.. ,तेरी बह.. के आदि लोकप्रिय गाली सुधिजनो के मुँह से सुन सकते हैं। सरकारी कार्यालय में बॉस -- साला रिपोर्ट क्यों नहीं भेजा । मुलाजिम - सॉरी सर। व्हाट साले सॉरी.. आदि। चोमस्की द्वारा इस सिद्धांत का प्रतिपादन वर्ष 1959 में किया गया था। उनके इस सिद्धांत के अनुसार वह मानते हैं कि बालक में भाषा को सीखने की क्षमता जन्मजात होती हैं, अर्थात भाषा अर्जन करने की क्षमता बचपन से ही छात्र में निहित होती हैं।
भाषा को अर्जन करने की ये क्षमता कुछ निश्चित समय तक होती है। बालक की भाषा अधिग्रहण क्षमता जो होती हैं वह शुरुआती 5 वर्ष तक प्रभावशील होती हैं। उसके पश्चात हमे किसी भाषा को सीखने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता हैं। क्योंकि उसके पश्चात भाषा को सीखने की क्षमता कम होते रहती हैं।
चोम्स्की के अनुसार बालक में भाषा अधिग्रहण यंत्र (LAD) होता हैं। जिसकी सहायता से वह किसी भाषा को तीव्र गति से सीख पाते हैं। यह यंत्र हमारे दिमाग का एक भाग होता हैं, जिसे निकाला या देखा नही जा सकता। यह प्राकृतिक क्षमता की देन होती हैं, सामान्य शब्दों में कहे तो इसे God Gift के रूप में देखा जा सकता हैं।
चोम्स्की मानते हैं कि बालक में भाषा या व्याकरण को सीखने की क्षमता जन्मजात होती हैं, परंतु उस भाषा को सीखने की क्षमता को क्रियान्वयन रूप वातावरण द्वारा दिया जाता हैं। अर्थात भाषा को सीखने हेतु वातावरण और संस्कृति का महत्वपूर्ण स्थान होता हैं।
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