मेरी यादों की झरोखे से !- प्रसिद्ध यादव।
खुशी के आंसुओं के साथ मेरे पौत्र पौत्री नंदलूर आंध्रप्रदेश सेअपने दोस्तों से जुदा होने का गम भी। अपनी माटी दानापुर बिहार में आगमन।साढ़े 11 वर्षों के बनवास काट कर।
यात्रा हमें सीख देती है। अब व्यक्ति पर निर्भर करता है कि किसने क्या सीखा? यादों में क्या संजोया ?हर आदमी को यादों के पल को कलमबद्ध करना चाहिए। इससे यादें ताजा हो जाती है और उसकी सीख दूसरे के साथ शेयर करने में आनन्द भी आता है।
आइये मेरी संक्षिप्त यात्रा के साथ आपको ले चलते हैं।
पहली बार ट्रेन पर चढ़ा जब मैं अपने नानी गांव पुनपुन के नीमा बैसा गया। पुनपुन से लंबी दूरी पैदल ही होता था लेकिन मुझे हर बार जाने में पैर में कांटे या शीशे जरूर गड़ जाता था।बगल के गांव चनेडीह में इलायज होता था। नाना के रहट चलाना मजा आता था।
इसके बाद विद्यार्थी जीवन में ट्रेन से बोधगया विश्वविद्यालय में जाकर धरणा प्रदर्शन करना।
1989 से लगातार लालू जी के आह्वान पर पटना रैलियों में जाना। राजगीर,सारनाथ का भी यात्रा हुआ। रैली के कारण वीपी सिंह, चौधरी चरण सिंह, करुणानिधि, ज्योति बसु ,नायडू,ममता से लेकर अन्य विभूतियों के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इंदिरा गांधी, राजीव गांधी जी को भी देखा।
युवा समय में मुंबई, नागपुर, चंडीगढ़,अम्बाला कैंट , पानीपत, कुरुक्षेत्र , सूरत ,अहमदाबाद, मेहसाणा,आनन्द, राजस्थान के अजमेर, पुष्कर, गरीब नवाज, ढाई दिन का झोपड़ा, किशनगढ़,ब्यावर का भी भ्रमण 90 के दशक में हुआ।
ओडिशा के कालाहाण्डी के केसिंगा, गुनूपुर गया। कालाहांडी में तो महीनों महीनों रहा। रांची ,धनबाद,,टाटा , बनारस,इलाहाबाद ,कानपुर,,कोलकाता ,बाबाधाम , दिल्ली का इंडिया गेट, संसद भवन, राष्ट्रपति भवन ,महरौली के कुतुबमीनार ,शक्ति स्थल,किसान घाट, राज घाट,समता स्थल पर जाकर महापुरुषों के समाधि स्थल पर नमन किया। यात्रा प्रेस के माध्यम से अनेक बार घुमा।
पुणे श्रीडी ,गोवा चेन्नई ,बंगलोर को देखा। मेरे जैसा सामान्य श्रेणी के रेल सफर करने वाला दुरंतो एक्सप्रेस के फर्स्ट ऐसी में सफ़र किया , पटना से बंगलोर, चेन्नई का सफर हवाई जहाज से हुआ। तिरुपति बालाजी जी का दर्शन 6 -7 बार हुआ । सिकंदराबाद, हैदराबाद के चार मीनार और ब्रियनी हॉउस में ब्रियनी खाने का मौका मिला। रेनिगुंटा, नंदलूर, कडप्पा मेरे दिलों में बस गया, क्योंकि यहाँ महीनों तक रहा। ये सब 2012 के बाद का सफर लड़कों के बाहर रहने के कारण हुआ। आज करीब साढ़े ग्यारह वर्षों के बाद बड़ा पुत्र घर वापसी हो रहा है। पोता पोती नंदलूर में ही पढ़ते थे, इनलोगों के दोस्त छूट गए। आने के समय काफी दोनो रोते हुए आये।विगत साल मैं 6 फरवरी को गया था और 13 अप्रैल को बिहार लौटा था।मुझे भी वहाँ से काफी लगाव रहा। खट्टी मीठी यादेँ जेहन में है।मै वहां होली,दिवाली,दशहरा, गणेश चतुर्थी ,मकर संक्रांति, विश्वकर्मा पूजा तक वहां मनाया है।
आज 24 फरवरी 23 को नंदलूर छोड़कर ज्येष्ठ पुत्र बहु पौत्र पौत्री रुंधे स्वर और आंसुओं के साथ दानापुर के लिए प्रस्थान कर दिए,साथ मे उनके मामा भी है। जो जहां रह जाता है, उस मिट्टी से ,वहां के लोगों से लगाव हो जाता है।
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