अहंकार से जन्मा क्रोध समूल्य नाश कर देता है।-प्रसिद्ध यादव।

 


जब ताकत हो रक्षक बने,धन हो तो दानी,ज्ञानी तो विनम्र बने । आज ठीक विपरीत हो रहा है और ऐसा कर खुद बर्बाद करते हैं।। मानव ही है जो हर रस का सदुपयोग कर सकता है, श्रृंगार रस, काव्य रस से लेकर वीर रस तक। अब लोग अपने अपने मन से इसका उपयोग करते हैं। जब अहंकार की यह भावना घर कर जाए कि मैं चाहे व्यक्तिगत हो या सामूहिक, किसी भी रूप में सर्वश्रेष्ठ, सर्वगुण संपन्न, शक्तिशाली और कुछ भी करने के लिए स्वतंत्र हूं तब जो सात गुण जीवन की डोर थामने के लिए बनाए गए हैं उनका अस्तित्व समाप्त होने लगता है। पवित्रता, शांति, स्नेह, प्रसन्नता, ज्ञान, शक्ति और गंभीरता के रूप में कहे गए ये सभी गुण समाप्त हो जाते हैं और अहंकार से जन्मा क्रोध जंगल की आग की भांति सब कुछ नष्ट करने हेतु अपने विकराल रूप में दिखाई देता है। क्रोध की आयु पानी में खींची गई एक लकीर से अधिक नहीं होती लेकिन इससे उत्पन्न हठ या जिद इतनी ताकतवर होती है कि एक क्षण में हमसे हिंसा, हत्या, आत्महत्या जैसे भयानक अपराधों से लेकर वह सब कुछ करा देती है जिसका परिणाम जीवन भर भुगतना पड़ सकता है। 

अचानक जैसे आंधी तूफान जैसा कुछ हो जाए, सब कुछ बिखरता हुआ सा लगे तो समझ लेना चाहिए कि केवल एक तत्व अहंकार और उससे जन्मा क्रोध तांडव कर रहा है  यह  एक पल में वह सब नष्ट करने की शक्ति रखता है जिसे हमने वर्षों की मेहनत से संजो कर रखा था और अपना सर्वस्व दांव पर लगा दिया था। इसका स्वरूप इतना भयंकर हो सकता है कि जैसे मानो व्यक्ति, परिवार, समाज और देश तक नष्ट होने जा रहा हो। एेसा लगता है कि मन के पांच विकार काम, क्रोध, मद मोह, लोभ और अहंकार मनुष्य को अपनी चपेट में लेते जा रहे हैं और उसकी हालत अजगर की कुंडली की गिरफ्त में होने जैसी होती जा रही है जिससे बाहर निकलने की कोशिश का परिणाम अक्सर अपने अंत के रूप में ही निकलता है।

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