नाथों के नाथ आशुतोष भोलेनाथ!। प्रसिद्ध यादव।
आशु का अर्थ होता है शीघ्र और तोश का अर्थ होता है तुष्ट होने वाला, प्रसन्न होने वाला। भगवान अपने भक्तों की प्रार्थना से तुरंत प्रसन्न हो जाते हैं, इसलिए उन्हें आशुतोष कहा जाता है। वे मात्र जल से अभिषेक कर देने से ही तुष्ट हो जाते हैं, अधिक कुछ करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती। प्रकृति में सहज पाए जाने वाले बेल पत्र, धतूरा चढ़ाने से प्रसन्न हो जाते हैं।
जिसका कोई नहीं, उसके भोलेनाथ होते हैं। भूत प्रेत, पिचाश, किन्नर, साँप, बिच्छु सभी भोलेनाथ नाथ के साथी हैं अर्थात संम्भाव, समतामूलक दृष्टि रखते हैं। यही कारण है कि बिना भेदभाव के सभी इनके शादी में बाराती बन कर गये थे। लोकहिकारी हैं, तभी तो अमृत छोड़ हलाल विष को पीकर नीलकंठ महादेव हो गये। शमशान की राख को अपने बदन में लगाते हैं ताकि लोग समझें कि मृत्यु सारभौम सत्य है और कभी अनैतिक कार्य नहीं करे।ये बाघ की छाला पहनते हैं इसका मतलब है कि मजबूत से मजबूत को भी उसके छल उधेर कर शरीर पर धारण करते हैं। इसलिए कोई अपने बल का दुरुपयोग न करे। भगवान शिव ने जिस तरह से सृष्टि में सामंजस्य बनाए रखने के लिए असर, तेज और तम गुण को त्रिशूल रूप में धारण किया था। ठीक उसी प्रकार सृष्टि के संतुलन के लिए उन्होंने डमरू धारण किया था। कहते हैं कि जब देवी सरस्वती का प्राकट्य हुआ तो उन्होंने वीणा के स्वरों से सृष्टि में ध्वनि का संचार किया। लेकिन कहा जाता है कि वह ध्वनि सुर और संगीत हीन थी। तब भोलेनाथ ने नृत्य किया और 14 बार डमरू बजाया। मान्यता है डमरू की उस ध्वनि से ही संगीत के धुन और ताल का जन्म हुआ। डमरू को ब्रह्मदेव का भी स्वरूप माना जाता है। भवभूति आशुतोष की कल्याणकारी संदेश को समझे यही इनके पंचाक्षरी मंत्र ' ॐ नमः शिवाय ' है। यही इनकी पूजा और इनके प्रति श्रद्धा भी है। आज हम शिव की पूजा करते हैं और धर्म, जाति, गरीबी - अमीरी में भेदभाव रखते हैं तो इसका मतलब है कि हम आशुतोष भोले नाथ को जाने ही नही तो केवल नाम जपने से क्या होगा? सम्यक दृष्टि, सम भाव, लोक कल्याण की भावना से हृदय ओतप्रोत है तो समझें कि हम निरन्तर कैलाशपति को स्मरण कर रहे हैं।
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