महागठबंधन के नेताओं में त्याग हो तब 20 24 में परिवर्तन संभव है! एक राजनीति आकलन।-प्रसिद्ध यादव।

 


 कुशल नेतृत्व के अभाव में सत्ता पक्ष की पुनरावृत्ति होते रहती है। सरकार के कार्यों के ख़िलाफ़, असन्तोष भी सत्ता में सरकार लौट जाती है। तिकड़मों की बात छोड़ दें । महागठबंधन में सबसे ज्यादा मारामारी नेतृत्व को लेकर है। कॉंग्रेस क्षेत्रीय दल के नेता के नेतृत्व में चुनाव लड़ना नहीं चाहती है खुद की पार्टी में राहुल गांधी से अलग होना नही चाहती है। राहुल गांधी का बयान भाजपा को संजीवनी बूटी की तरह काम करती है।  भाजपा को सबसे अधिक खतरा नीतीश तेजस्वी के गठजोड़ से है।अगर यह गठजोड़ 2024 तक रह गया तो भाजपा सत्ता से अपदस्थ  भी हो सकती है क्योंकि  40 में से 39 सीटें एनडीए को मिली थी। नीतीश तेजस्वी की मेल भाजपा को बिहार में 10 सीटों से कम पर सिमट देगी।यही कारण है कि भाजपा उपेंद्र कुशवाहा को अपने पाले में कर रही है और सम्राट चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष के कमान सौंपी लेकिन भाजपा के लिए यह नाकाफी है। भाजपा जबतक साहनी मांझी को अपने पाले में नही कर लेती तब तक इसकी लाज बचना असम्भव है।तेजस्वी का युवाओं में अलग क्रेज है तो नीतीश राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं।भाजपा के हर रणनीति से वाकिफ हैं। यूपी में विपक्ष में कोई एकता नही है और अखिलेश भाजपा को कुछ नहीं बिगाड़ सकते हैं।मायावती भाजपा के साथ जाए न जाये लेकिन परोक्ष रूप से उसे मदद जरूर पहुंचाती है जैसे की ओबैसी। झारखंड,  उडीसा ,बंगाल,दिल्ली, पंजाब,राजस्थान में भाजपा की कोई चमत्कार नही है।मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र में भी उत्साहित नही है।दक्षिण भारत के राज्यों तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, तेलेंगाना केरल में कुछ मिलने वाला नहीं है।पूर्वोत्तर राज्यों ,गोवा,कर्नाटक जैसे राज्यों के भरोसे सत्तासीन होना नामुमकिन है। हरियाणा, उत्तराखंड, जम्मू कश्मीर गुजरात भरोसेमंद है। अगर महागठबंधन नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ती है तो भाजपा को सत्ता से अपदस्थ होने से कोई नहीं रोक सकता है।बिहार में आज भी अति पिछड़ा ,पिछड़ा,दलित , अल्पसंख्यक,कुछ प्रगतिशील विचार के लोग  नीतीश- तेजस्वी के साथ चट्टानी एकता के साथ खड़े हैं।बिहार का सीधा असर झारखंड, यूपी,बंगाल में पड़ता है।बिहार भाजपा की विडंबना है कि इसके बिहार के नेता भाजपा के उपज के नहीं हुए। प्रायः राजद के ही उपज के हैं चाहे जायसवाल हों या सम्राट।भाजपा का सबसे अधिक काम राहुल गांधी से बनता है। मोदी नाम लेकर पूरे मोदी समुदाय को भला बुरा कहना कहीं से औचित्य नहीं है। विपक्ष सरकार की अलोकतांत्रिक नीतियों का विरोध करता है न की व्यक्तिगत तौर पर प्रधानमंत्री को।विपक्ष को अपने रवैये में बदलाव लाना होगा और अपनी साफ छवि को जनता के बीच लाना होगा।सरकार संवैधानिक संस्थाओं का दुरुपयोग कर रही है, विरोधियों को तंग कर रही है, फंसा रही है।इस बात की पुष्टि सबूत के साथ जनता के साथ साझा करना होगा। बिहार में लेफ्ट का अपना अलग जलवा है। गठबंधन 2020 के विधानसभा चुनाव में जहाँ भाजपा के या एनडीए के सांसद विजयी हुए थे वहां सभी सीट महागठबंधन जीत लिया, एनडीए की बोहनी तक नही हुई। औरंगाबाद, सासाराम  क्षेत्र सहित पाटलिपुत्र इसके उदाहरण है।

नीतीश तेजस्वी के साथ साथ रहना ही भाजपा को पसीने छुड़ाने के लिए काफी है।

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