राजधर्म का पालन कितना ? -प्रसिद्ध यादव।
राजवर्ग को देश का संचालन कैसे करना है, इस विद्या का नाम ही 'राजधर्म' है।केंद्र सरकार की सब के साथ, सब के विकास की जुमलेबाजी बिल्किस बानो के दोषियों के रिहाई के मामले में असली चेहरा सामने आ गया।दिन रात नफरती बयान और चहेते को मुनाफा और इसपर सवाल पूछने वाले को जल्दबाजी में संसद की सदस्यता समाप्त कर देना ,राजनेताओं द्वारा नफरती बयान पर सुप्रीम कोर्ट की फटकार आदि कैसा राजधर्म है? युद्ध उपरांत भीष्म पितामह द्वारा युधिष्ठिर को बताया गया राजधर्म आज भी प्रासंगिक है।
यदि राजा प्रजा की रक्षा न करे तो बलवान मनुष्य दुर्बलों की बहु-बेटियों को हर ले जायं और अपने घरबार की रक्षा के लिए प्रयत्न करने वालों को मार डालें।
यदि राजा रक्षा न करे, तो इस जगत् में स्त्री, पुत्र, धन अथवा घरबार कोई भी ऐसा संग्रह सम्भव नहीं हो सकता, जिसके लिए कोई कह सके कि यह मेरा है, सब ओर सब की सारी सम्पत्ति का लोप हो जाय।
यदि राजा प्रजा का पालन न करे तो पापचारी लुटेरे सहसा आक्रमण करके वाहन, वस्त्र, आभूषण और नाना प्रकार के रत्न लूट ले जायं।
यदि राजा रक्षा न करे तो धर्मात्मा पुरुषों पर बारंबार नाना प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों की मार पड़े और विवश होकर लोगों को अधर्म का मार्ग ग्रहण करना पड़े।
यदि राजा रक्षा न करे तो धनवानों को प्रतिदिन वध या बन्धन का क्लेश उठाना पड़े और किसी भी वस्तु को वे अपनी न कह सकें।
युधिष्ठिर! तुम माली के समान बनो, कोयला बनाने वाले के समान न बनो (माली वृक्ष की जड़ को सींचता और उसकी रक्षा करता है, तब उससे फल और फूल ग्रहण करता है, परंतु कोयला बनाने वाला वृक्ष को समूल नष्ट कर देता है; उसी प्रकार तुम भी माली बनकर राज्यरूपी उद्यान को सींच कर सुरक्षित रखो और फल-फूल की तरह प्रजा से न्यायोचित कर लेते रहना, कोयला बनाने वाले की तरह सारे राज्य को जलाकर भस्म न करो), ऐसा करके प्रजा पालन में तत्पर रहकर तुम दीर्घकाल तक राज्य का उपभोग कर सकोगे।
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