सच पर डर हावी !-प्रसिद्ध यादव।
रफ़्ता रफ़्ता डर जाएँगे
क़िस्तों में हम मर जाएँगे
जो डर गया ,वो मर गया! हमें डर होता है, सम्बन्ध बिगड़ने का ,दोस्ती छूटने का इसलिए सच नहीं बोलते हैं। डर होता है रसूख वाले से, पैसे वाले, पावर वाले से,जमात से ,समाज से ,सम्बन्धियों से, परिवार से इसलिए सच नहीं बोलते हैं। हमें गलत का विरोध करने में डर लगता है।यकीनन ऐसे डरने वाले लोग मरे हुए हैं।ऐसे लोगों को न खुद का भला होगा और न किसी और का।ऐसे लोग दब्बू बनकर रह जाते हैं।खरी खोटी कहने की आदत डालें। एकबार लोकलाज त्यागकर मुखर होकर आक्रमक हो गए तो डर सदा के लिए भाग जाएगा।आज झूठ ,जुमलेबाजी की मार्केटिंग व ब्रांडिंग हो रही है।इस झूठ को विरोध करने का साहस बहुत कम लोगों में है। कुछ लोग डर के मारे झूठों के साथ डाइल्यूट हो कर पवित्र हो गए हैं। जो सच बोलने की ताकत रखते हैं, उन्हें तरह तरह की यातनाएं दी जा रही है।इतिहास गवाह है कि सभी बुद्ध , गैलेलियो, सुकरात, कबीर,पेरियार ,अम्बेडकर नहीं हो सकते हैं, लेकिन मुर्दे होने की उम्मीद भी नहीं कर सकते हैं।सबकुछ राजनीति या पद नहीं है, अपनी ज़मीर भी होती है, इसे कभी मरने नहीं दें। गैलेलियो ने सच बोला था। उसने कहा था कि सूर्य पृथ्वी के चारों तरफ नहीं घूमता बल्कि पृथ्वी सूर्य के चारों तरफ घूमती है। जबकि धर्मग्रन्थ में लिखा था कि पृथ्वी केन्द्र में है और सूर्य तथा अन्य गृह उसके चारों तरफ घुमते हैं। गैलीलियो ने जो बोला वो सच था।सुकरात ने सत्य की आधुनिक और व्यावहारिक व्याख्या करते हुए कहा, 'सच्चा ज्ञान संभव है, बशर्ते उसके लिए ठीक तौर पर प्रयत्न किया जाए। जो बातें हमारी समझ में आती हैं या हमारे सामने आई हैं, उन्हें तत्संबंधी घटनाओं पर हम परखें, इस तरह अनेक परख के बाद हम एक सचाई पर पहुंच सकते हैं। ज्ञान के समान पवित्रतम कोई वस्तु नहीं हैं।महात्मा बुद्ध ने जो प्राणी जगत को पहला आर्य सत्य का ज्ञान दिया वह है \'संसार में दुःख है\'। महात्मा बुद्ध ने अपने पहले आर्य सत्य में यह बताया कि इस संसार में कोई भी प्राणी ऐसा नहीं है जिसे दुःख ना हो। इसलिए दुःख में भी सदैव प्रसन्न रहना चाहिए।
संत कबीर कहते हैं -
साँच बराबर तप नहीं,नहीं झूठ बराबर पाप!
गांधी जी ने कहा, सत्य केवल शब्दों की सत्यता ही नहीं बल्कि विचारों की सत्यता भी है और हमारी अवधारणा का सापेक्षिक सत्य ही नहीं है बल्कि निरपेक्ष सत्य भी है, जो ईश्वर ही है। गांधी जी सत्य को निरपेक्ष सत्य के रूप में ग्रहण करते हैं। सत्य को ईश्वर का पर्यायवाची मानते हैं, इसी सत्य के प्रति निष्ठा है।
राजा हरिश्चंद्र के राज्य में कोई भी दुखी नहीं था पूरे राज्य में सुख समृद्धि और शांति थी. जिस कारण उनकी ख्याति चारों दिशाओं में फैली हुई थाी. उनके बारे में यह कहा जाता था कि राजा हरिश्चंद्र अगर सपने में भी कोई वचन दे दें तो उसे पूरा करते हैं.
आज राजनेता जनता के बीच वादे कर के मुकर गए और कहने में तनिक शर्म भी नहीं करते कि ये जुमला था।हद हो गई झूठ की ।
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