खुद पेंशन पर जीने वाले पुरानी पेंशन बन्द कर दिया !-प्रसिद्ध यादव।

    


 एनडीए सरकार की जनविरोधी नीतियों की शुरुआत बाजपेयी सरकार से शुरू हुई थी, जब देश की अर्थव्यवस्था की हवाले देकर केंद्रीय कर्मचारियों के पुरानी पेंशन योजना बन्द कर दिया था।नतीजा बाजपेयी सरकार सत्ता से बेदखल हो गई थी।अब इस बार केंद्रीय कर्मचारियों में केंद्र सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ काफी आक्रोश है और हर महीने के 21 तारीख को पूरे देश मे धरणा देंगे। सरकार की माथे से पसीने छूट रही है और लगता है कि कहीं कृषि कानून के तीन बिल जैसे वापस न लिए जाएं। मोदी सरकार सत्ता में बने रहने के लिए लाखों केंद्रीय कर्मचारियों व उनके परिजनों के आक्रोश नहीं झेल पाएगी। क्या जनता के प्रतिनिधि को राजा की तरह रहना चाहिए? यह सवाल इसलिए उठता है क्योंकि 1 अप्रैल 2004 से पेंशन बंद हो गई है, नई पेंशन प्रणाली में बीमा प्रीमियम की तरह सरकारी कर्मचारियों को खुद अंशदान करना पड़ता है। जितना ज्यादा अंशदान, रिटायरमेंट पर उतनी ज्यादा पेंशन। लंबे समय से पुरानी पेंशन को बहाल करने की मांग उठती रही है। आम जनता में यही धारणा बनी है कि चुने हुए नेताजी खुद अपने लिए वेतन-भत्ते बढ़ा लेते हैं, पर कर्मचारियों को मांगों को अनसुना कर दिया है। अक्सर सवाल उठते हैं कि आमतौर पर समृद्ध बैकग्राउंड से आने वाले जनप्रतिनिधियों को क्या आजीवन पेंशन देना ठीक है? अगर हां, तो 60 साल की उम्र तक अपना जीवन खपाने वाले सरकारी कर्मचारियों को पेंशन क्यों नहीं? सांसद-विधायकों और आम लोगों में अंतर का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि कोई एक दिन के लिए भी सांसद बन जाए तो उसकी लॉटरी लग जाती है। जी हां, उसे जीवनभर 25 हजार रुपये की पेंशन मिलती है। आइए समझते हैं नेताजी की पेंशन कैसे तय होती है और किसी विधायक या सांसद को अधिकतम कितनी पेंशन मिल सकती है?     इस पेंशन फंड का पैसा शेयर और बॉन्ड मार्केट में लगाया जाता है और मुनाफा बाजार के उतार-चढ़ाव पर निर्भर करता है। निवेश में गिरावट से पेंशन की राशि कम हो जाती है। पुरानी पेंशन में जीपीएफ की व्यवस्था थी, जिसे अब सीपीएफ बना दिया गया है। इसमें कर्मचारियों को कंट्रीब्यूशन देना होता है, मगर तय पेंशन की कोई गारंटी नहीं है। जीपीएफ में कर्मचारी का कोई कंट्रीब्यूशन नहीं होता है और तय पेंशन की गारंटी होती है। पुरानी पेंशन पाने वालों को हर छह माह बाद महंगाई और वेतन आयोगों का लाभ मिलता है, वहीं एनपीएस में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।

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