बाबा साहेब अंबेडकर के परिचर्चा की बैनर तले इन्ही की निंदा ! -प्रसिद्ध यादव।

  

हम जिस मनुवादियों से लड़ने की बात करते हैं, वो मनुवादी हमारे बीच में ही है और उसे सर आंखों पर बिठा कर लोग रखते हैं। कितने मजबूर ,बेबस,लाचार होते हुए लोगों को देखा है मैंने। जैसे बीच सभा में द्रोपदी की चीर हरण हो रही है और सभी वीर भूप ,विद्वान सर झुका कर बैठे हों। किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी कि उसे कोई टोके भी ,रोकने की बात तो दूर थी। सिर्फ इसलिए की वो नव धनाढ्य था ,दबंग था ,उसके सर पर बड़े लोगों का हाथ था। फिर वैसी सभा नहीं होना चाहिए और अगर हो तो स्वाभिमानी लोगों को नहीं जाना चाहिए अगर उसे विरोध करने का हिम्मत नहीं रखता है। यहां तेल मालिस कर के पद लिया जाता है।जहाँ चापलूसी हो वहाँ सिर्फ चापलूसों की पूछ होती है।मैंने आज तक न किसी की चापलूसी किया है न कभी किसी पद की लालसा रखा है। चमकते सितारों की जुगनू की जरूरत नहीं होता है।

मैं इस परिचर्चा का हिस्सा था। कैसे चीर हरण हो रहा था जरा गौर करेंगे -" अम्बेडकर ! अम्बेडकर ! क्या संविधान केवल यही बनाये थे।299 लोग कमिटी में थे और संविधान को प्रेम बिहारी ने लिखा था। जब उनसे मेहनताना पूछा गया था तो उन्होंने कुछ भी लेने से इनकार कर दिया था। उन्होंने सिर्फ एक शर्त रखी कि संविधान के हर पृष्ठ पर वह अपना नाम लिखेंगे और अंतिम पेज पर अपने नाम के साथ अपने दादा का भी नाम लिखेंगे। लोग मनुस्मृति के खिलाफ बोलते हैं, जब अपने इतिहास को भूल जाएंगे तो कैसे होगा?कभी कुरान को भी पढिये, इसमें भी बहुत खामियां हैं लेकिन इसके खिलाफ कोई कुछ नहीं बोलेगा सिर्फ मनुस्मृति के खिलाफ बोलेगा। राजेंद्र प्रसाद संविधान के अध्यक्ष थे फिर इन्हें क्यों नहीं संविधान के निर्माता कहते हैं ...इसी बीच मैं उसे सिर्फ टोका नही,बल्कि विरोध किया। इसके बाद मै मंच से बोला -" बाबा साहेब ने जीवन को शब्दों में बयान करना असम्भव है।वे न सिर्फ संविधान के निर्माता थे बल्कि एक अर्थशास्त्री, विधिवेत्ता के अलावे देश में जातिविहीन समाज की कल्पना किये थे।, छुअचत ,गैरबराबरी की भी लड़ाई लड़े थे।


वे 8 भाषा के ज्ञाता और 36 डिग्रियां हासिल किये थे।  दुनिया के 13 बड़े संस्थानों में इनकी प्रतिमा लगी हुई है और पूरी दुनिया इनके जन्मदिन को मनाती है।"मेरे माइक की लाइन काट दी जाती है।शायद अम्बेडकर जी की गाथा सुनना कुछ लोगों को पसंद नहीं था।सिर्फ अंबेडकर जी के नाम पर ढोंग हो रहा था।यह हाल था पटना सदर अनुमण्डल स्तरीय अम्बेडकर परिचर्चा का।बुद्धिजन मेरी पीड़ा को समझ रहे होंगे।यह बात भले ही कुछ लोगों के लिए कुछ नहीं थी,लेकिन मेरे लिए बहुत बड़ी बात है।मेरे लिए सकूं की बात यह है कि मैं चीर हरण होते - होते रोक दिया।

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