इतिहास में भी वंचितों को उचित स्थान नहीं मिला।-प्रसिद्ध यादव।

 

   



आरती लिए तू किसे ढूँढ़ता है मूरख
मन्दिरों, राजप्रासादों में, तहखानों में ? 
देवता कहीं सड़कों पर गिट्टी तोड़ रहे
देवता मिलेंगे खेतों में, खलिहानों में 

फावड़े और हल राजदण्ड बनने को हैं
धूसरता सोने से शृँगार सजाती है
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है ।
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जी की यह पंक्तियां आज भी चीख -चीख कर लोगों को जगा रही है।
जो पढ़ेंगे वही ज्ञान होगा । देश की स्वतंत्रता संग्राम 1857 बताया जाता है जबकि  1855 में  सिद्धू-कान्हू के नेतृत्व में ब्रिटिश सत्ता, साहुकारों, व्यापारियों व जमींदारों के खिलाफ हूल - हूल के नारा के साथ सशस्त्र युद्ध का शुरूवात किया, जिसे संथाल विद्रोह या हूल आंदोलन के नाम से जाना जाता है। संथाल विद्रोह का नारा था- "करो या मरो अंग्रेजों हमारी माटी छोड़ो" । 30 जून 1855 की सभा में 5000 से भी ज्यादा आदिवासी एकत्र हुए जिसमें सिद्धू, कान्हू, चाँद एवं भैरव को उनका नेता चुना गया।
जबकि अंग्रेजो मे इसका नेतृत्व जनरल लॉयर्ड ने किया जो आधुनिक हथियार और गोला बारूद से परिपूर्ण थे। इस मुठभेड़ में महेश लाल एवं प्रताप नारायण नामक दरोगा की हत्या कर दी गई जिससे अंग्रेजो में भय का माहोल बन गया संतालों के भय से अंग्रेजों ने बचने के लिए पाकुड़ में मार्टिलो टावर का निर्माण कराया गया। अंततः इस मुठभेड़ में संतालों कि हार हुई और सिद्धू-कान्हू को फांसी दे दी गई।
आज देश के लिए मर मिटने वाले सत्ता में कितने हिस्सेदार हैं?बल्कि अंग्रेजों के मुखबिरी करने वाले सत्ता पर काबिज़ है क्यों? कभी जवाब ढूंढे हैं! आपको अपने इतिहास की जानकारी नहीं है और मनुवादियों के शिकार हैं।
स्वच्छता के जनक बाबा गाडगे थे ,लेकिन ब्रांडिंग महात्मा गांधी जी की है।
बाबा गाडगे जिस भी स्थान या गांव में जागरूकता के लिए जाते थे, वहां पहले स्वयं साफ-सफाई करते थे। यही संदेश उन्होंने लोगों को भी दिया कि बिना सरकारी अमले या किसी और से मदद की अपेक्षा किए अपने आसपास के वातावरण को साफ रखा जाए। गाडगे बाबा की ये और ऐसी कई खूबियों के कारण बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर उन्हें अपना गुरू मानते थे। इस संस्था ने सरकार से मांग की कि जिस तरह महाराष्ट्र सरकार प्रत्येक वर्ष संत गाडगे के नाम पर स्वच्छता अवार्ड प्रदान करती है, उसी तरह केन्द्र सरकार भी संत गाडगे के नाम पर स्वच्छता सम्मान को शुरू करे। यही नहीं, संत गाडगे के नाम पर एक दिन के राष्ट्रीय अवकाश की मांग भी संस्था ने रखी।
वंचितों,महिलाओं के लिए  शिक्षा की अलख  ज्योति बा फुले,सावित्री बाई ,फातिमा शेख ने जगाई लेकिन शिक्षक दिवस किसी और के जन्म पर मनाते हैं और शिक्षा की देवी किसी और को मानते हैं।
192 साल पहले इस दिन पुणे के एक परिवार में भारतीय शिक्षिका और समाज सुधारक फातिमा शेख का जन्म लेना. फातिमा, ज्योतिराव फुले और सावित्रीबाई फुले की सहयोगी थीं. जिन्होंने बिना धर्म जाति देखे शिक्षा, विशेषकर स्त्री शिक्षा के लिए वो किया, जो आज देश दुनिया के किसी भी शिक्षाविद के लिए मील के पत्थर से कम नहीं है.शिक्षा के क्षेत्र में जो योगदान फातिमा शेख और सावित्रीबाई फुले जैसी शख्सियतों ने दिया, उसे किसी तरह के शब्दों में नहीं बांधा जा सकता. मगर जिस तरह उनके योगदान को नकारते हुए उन्हें हिंदू और मुस्लिम के तराजू में तौला जा रहा है वो स्वतः इस बात की पुष्टि कर देता है कि हम बिना हिंदू मुस्लिम   के रंग में रंगे किसी चीज को देख ही नहीं पाते.

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