10 गधों के बीच रहने से अच्छा है , अकेले रहें !- प्रसिद्ध यादव।
घर में आस्तीन के सांप न पालें !
" पैंसठवा के घर पूछ रहे हो !" एक सम्मानित व्यक्ति के घर के पता कुछ मेरे मित्र ताश खेल रहे रईस के औलाद से पूछा और उसका जवाब यही था।यह वाकया मेरे मित्रों ने सुनाया ।तब लगा कि उस मित्रों के ही थोबड़ा तोड़ दें, जो नपुंसक की तरह ये बात सुनकर मुझे सुना रहा था। मैंने कहा कि अगर उस जगह पर मैं होता तो उसके थोबड़ा वही तोड़ देता, परिणाम चाहे जो होता।ये सामंती मिजाज अभी कम नहीं हुआ है। " अहीर समझावे सो मर्द , कोइरी के बुद्धि कियारी भर " आदि अनेक कहावतें समन्तियों द्वार बोला जाता है । दलित महादलित के लिए और गंदे शब्दों का प्रयोग आज भी होता है। इसके बावजूद भी लोग मनुवादियों के पालकी ढो रहा है, जयकारा कर रहा है तो समझिए आप घर में सांप पाल रहे हैं।मेरे चाचा डीआरएम कार्यालय, दानापुर में चतुर्थवर्गीय कर्मचारी थे और पूरा कार्यालय मनुवादियों से भरा होता था । उन्हें ट्रोल करते हुए कहता था, " का गोवार! करुआ तेल के दाम गिर गया है क्या ? कपड़ा के भाव गिर गया है क्या ? " जब वो माथे में तेल लगाकर जाते,जब कभी नए कपड़े पहनकर जाते ,लेकिन चाचा हाज़िर जवाबी थे और झट से कह देते थे, " चालाक के हम ....ही।, जुरू जमीन जोर के ,नही तो कोई और के ।" सन्नाटा छा जाता था।वे कृषि कवि घाघ, पूंडरी की हर कहावत को जुबान पर रखते थे और सुनाते थे। इनके बड़ा बाबू आदरणीय फकीरचन्द दास थे,जो इन्हें खूब मानते थे और कभी किसी छोटे में हम भी साथ जाते तो खूब पढ़ने के लिए सलाह देते थे। दास मतलब समझ गए होंगे। ऐसे ही इस कार्यालय में बीपीएससी के पूर्व चेयरमैन शिवजतन ठाकुर के भाई रामजतन ठाकुर ओएस थे। सीनियर डीसीएम सामंती मिजाज के था और कमर में पिस्टल लेकर कार्यालय आता था।एक दिन किसी बात को लेकर ठाकुर जी से कहासुनी हो गई। सिंह पिस्टल निकालकर ठाकुर जी के कनपटी पर सटा दिया। ठाकुर जी का तेवर कम नहीं हुआ और चुनौती दे डाले की मारो ,लेकिन हम डरेंगे नहीं । बाद में सिंह अधिकारी को मालूम हुआ कि इसके बड़े भाई उसके बाप से भी ऊंचे है तो जाकर माफ़ी मांगी। हजाम जाती होने के कारण समन्तियों के मन पटल पर घृणा भरा रहता है।अपने सीने में आग जला कर रखो ,किसी की हिम्मत नहीं है कि तेरे तरफ तिरछी नज़र से भी देखे। दूसरा वाक्या आज ही खगौल के एक सहपाठी मित्र ने सुनाया । इसका बहुत बड़ा मार्केट है और यही पर भाजपा की हर गतिविधि, बैठक होती है। इसी कारण से इस मित्र से मेरी दूरी बनी रहती है।कभी कभी मुलाकात होने पर अपने अंधभक्ति की अनन्त सुख कथा सुनता था और मैं हंसकर सिर्फ इतना कहता था कि" जिस दिन बवासीर के दर्द बढ़ जाएगा ,उस दिन मुझे निसंकोच याद कर लेना।मेरा नाम हर मर्ज की दवा है। वो दर्द,दुखड़ा आज सुना दिया " रामदेवआ के माल रखे हें रे ?" इतना सुनते ही सनातन धर्म का भूत उतर गया।उसे लगा कि आज भी हमलोगों को नीच समझा जाता है, जबकि सनातन के ठेकेदार यही बने हुए थे। एन वक्त पर इस मित्र को मेरा तेवर याद आ गई - ईंट का जवाब पत्थर से । झट से इसने भी बोल दिया - कोउची कोउची तोरा लेवे के औकाद हऊ? आओ ले !" इतना सुनते ही उस सामंती मिजाजी को काठ मार गया। मित्र बोला -ये तुम्हारे संगति का असर है।मैंने कहा" नहीं रे ये बाबा साहेब अंबेडकर की ताकत है जो संविधान से मिला है।" अब आप सोचिए जब पिछड़े वर्ग के मजबूत यादव, बनिया , कोइरी, कुर्मी का हाल सामंती आज भी ऐसा कर दे रहा है तो दलित,महादलित, st भाइयों के हाल क्या होता होगा ? 10 गधों के बीच में रहने से अच्छा है कि आप अकेला रहें, नहीं तो आपकी भी गिनती उन गधों में हो जाएगी।
सभी घटनाएं सत्य है और लेस मात्र भी कोई कल्पना नहीं है।ये बात क्यों बता रहे हैं ?समझ गए होंगे, नहीं समझे तो कॉमेंट में पूछें। खुद को इतना मजबूत, संगठित बने की कोई आंख दिखाने की जुर्रत नही करे और कोई आंख दिखाए तो ... एक त्रिवेणी संघ ने बिहार में भूचाल ला दिया था।आज तो बहुजनों, वंचितों साथ -साथ हो गए हैं।
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