आज 41 वां साल गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया।-प्रसिद्ध यादव।
तेरे पास है तो मुझे क्या कमी है!
समय चक्र अपने गति से चलते रहता है।हमारी उम्र बीतते रहती है।पति पत्नी का संबंध जीवन की ऐसी दो धुरी है कि बहुत बैलेंस के साथ चलना पड़ता है। दोनों धुरी को एक दूसरे का खयाल रखना पड़ता है।इसमें न कोई छोटा ,न बड़ा होता है।एक दूसरे के मान सम्मान का भी ख्याल रखना पड़ता है। किसी पुत्री के पिता बड़ी भरोसे के साथ अपनी पुत्री की हाथ आपके हाथों में देते हैं और इस भरोसे को आजीवन रखना पड़ता है।कभी आप ससुराल जाते हैं, ससुराल वाले अपने सामर्थ्य से अधिक आपका खयाल रखते हैं।क्यों ? ताकि आप भी उसकी फूल को खयाल रखें। अगर इन बातों का एहसास रखते हैं तो मेरा दावा है कि आपकी गृहस्थ जीवन पर कभी भी किसी की कुदृष्टि नहीं लगेगी। लेकिन मन को जहां चंचल कर दिए तो जीवन में अंधकार आना तय है। पत्नी आपके खाने पीने से लेकर कपड़े लते तक खयाल करती है तो आपका भी फ़र्ज़ बनता है कि उसे भी खाने पीने के लिए पूछें, कहीं सैर सपाटे पर जाएं। प्यार से, मुस्कुराकर बात करने में पैसे नहीं लगते हैं, लेकिन इस मामले में अधिकांश लोग कंगाल हैं। पति पत्नी में नोकझोंक होते रहती है लेकिन हास्य परिहास भी जरूरी है।पति के हर जरूरत को पत्नी जानती ,समझती है लेकिन पति देश दुनिया को समझ जाता है लेकिन पत्नी को जानने में नासमझ होता है। आपके चरित्र थोड़ा सा ढीला हुआ, पत्नी समझ जाती है।वो हावभाव की पारखी होती है और यही से शुरू हो जाता है गृह युद्ध। दोनों में से जिसको जैसा मिला सन्तोषभाव से रहिये।ज्यादा किसी की जीभ लबलबया तो ग्रीन से रेड सिंग्नल होते देर न लगेगी। 40 साल मेरा जीवन में तूफान ही रहा। सकून, चैन क्या होता है?हमदोनों नहीं जाने।हर आने वाला कल अनिश्चितता भरा होता था फिर भी किसी से कोई शिकायत नहीं। अपने सामर्थ्य से अधिक मेहनत कर जीवन में अच्छा करना चाहा, लेकिन हम अपनों के ही आंखों के कांटे बन गए और हर बार मंजिल एक कदम दूर रह गया था। 1994 व 95 का वो काला साल जब दारोगा, स्टेशन मास्टर होने से सिर्फ एक कदम नीचे रह गए थे, इंटरव्यू में छंट गये थे। बीपीएससी मेन्स ,लेक्चरर के इंटरव्यू का सफर तय किया।पीएचडी करने के लिए पैसे नहीं थे। हालांकि मेरे कई करीबी लक्ष्मीपति थे,लेकिन पढ़ाई के नाम पर शून्य। कहीं हम वैसे लोगों से आगे नहीं चले जाते। एमए की जब पढ़ाई करता था तो साथ साथ ठेकेदार के यहां काम भी करता था टेलीफोन विभाग में।ये वाक्या इसलिए बताया कि बुरे दिन में भी पति पत्नी का भरपूर साथ होना चाहिए। जब समय खराब हो तो बहुत ज्यादा दूसरों पर भरोसा न कर खुद भुजाओं से काम लें।बहुत लक्ष्मी पुत्रों को तनावग्रस्त देखते हैं कारण कहीं पर निगाहें,कहीं पर निशाना। मुझे किसी की खुशामद करने की आदत नहीं पड़ी ।मैं अपने जरूरत को सीमित रखा और हृदय में हमेशा करुणा, प्रेम का भाव रखा।हां, जिसने भी मुझे कोई चुनौती दिया, पत्थर से भी सख्त हो गया। मुझे पथ से अडिग करना असम्भव हुआ। कैसा लगा मेरा छोटा सा संदेश?जरूर बताएं।आप शुभचिंतकों की शुभाशीष व दुवाओं से मेरी ये जीवन की गाड़ी निर्बाध चलती रहे।
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