गटर में सहानुभूति !(कहानी ) - प्रसिद्ध यादव।

   


गटर का ढक्कन खुला था, जो उस रास्ते जाता उसी में गिर जाता। गटर में गिरने वालों की संख्या  बहुत हो गई।कुछ उसी में अपना घेरा बनाकर रहने लगे और दूसरों से सुपर दिखने लगे। नेता जी को मालूम हुआ कि इस गटर में बहुत लोग हैं।नेता जी मिलने की इच्छा जाहिर किया और इसकी खबर मीडिया में प्रमुखता से छपी। नेता जी ढक्कन के ऊपर से हाथ हिलाए।नीचे से जयजयकार होने लगी। फोटो शूट हुआ, अखबारों के हेड लाइन बना " नेता जी का दरिया दिल !", गटर के लोगों की ली सुध !" ,  " अंतिम पंक्तियों के लोगों के लिए आया दिल !".  पत्रकारों ने यह नहीं पूछा कि आखिर इनलोगों के दुर्दशा के लिए जिम्मेवार कौन है? प्रेस कांफ्रेंस खत्म होने के बाद पत्रकारों को अच्छे होटल के खाना खिलाया गया और लिफाफा भी थमाया गया।   गटर में रहने वाले भी खुश थे कि इतने बड़े नेता जी हालचाल लेने आये । ऐसे नेता कहाँ मिलेगा? दुख में दर्द में कम से कम आंसू पोछने तो आ जाते हैं। इस नरक से निकलने का उपाय क्या है?यह कभी सोचा ही नहीं और ना ही नेता जी इस पर कोई जिक्र किया।जैसे भारत में गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम दशकों से चल रहा है, छुआछूत को अपराध माना जाता है लेकिन यह सदियों से चलते आ रहा है। न हम शिक्षा की बात करते हैं न स्वास्थ्य, न रोजगार, न सुरक्षा की।हम तो नेता जी के दर्शन मात्र से, उनके लच्छेदार भाषणों से तृप्त हैं। ऐसे लोग भी गटर में गिरे हुए लोगों की तरह संतुष्ट हैं। कुछ तो भंगी ये सोच -सोच कर दिल  बाग -बाग कर रहे हैं कि कुम्भ में बड़े नेता के द्वारा इनके लोगों को पांव पखारे गये थे, भकाकभक  तौलिया से चरण साफ किया गया था। जैसे लोगों की संतुष्टि " मन की बात " से हो जाती है तो काम की बात करने से क्या फायदा? भले इनके कितने भाई गटर सफाई करने में जान क्यों न दे दी हो ?  गटर से बाहर की भी दुनिया है, उस दुनिया में आकर देखो। स्वर्ग नरक कहीं और नहीं है।हर धनवान के पैरों के नीचे नरक है जो इनके पैरों के नीचे होते हैं। धनवान अगर भाई भी हो गया तो अपने भाई को चरणों के दास समझने में गुरेज नहीं करता । 

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