गुमनाम वीर की जीवनसंगिनी की गुमनाम अंतिम यात्रा !- प्रसिद्ध यादव।
फुलवारी प्रखंड के बाबूचक मेरी जन्मभूमि से देश के लिए लड़ने वाले की विधवा की लू लगने से मौत हो गई। कल गर्मी से तबीयत बिगड़ी, अस्पताल जाती ,उससे पहले ही दम तोड़ दी। इस विधवा की जीवन की कहानी में सिर्फ विपदा ही विपदा रही। इनके पति श्यामबिहारी यादव देश सेवा में एक सैनिक की तरह बहादुरी से पाकिस्तान के खिलाफ लड़े थे। पहले थोड़ा इस विधवा की अनंन्त पीड़ा को जानें।
शादी होकर आई थी ।घर में घुसने से पहले गठबंधन पति पत्नी में हुआ और इसके बाद दाउरा में पैर रखकर घर में घुसने की रस्म अदा कर ही रहे थे कि बगल में परिवार से ही दरवाजा खोलने के लिए विवाद हो गया। श्यामबिहारी यादव रस्म अदा पूरा किये ही विवादित स्थल पर पीला धोती पहने ,आँखों में काजल किये पहुंच गए । दूसरे तरफ विरोधी पक्ष से भी परिवार के सदस्य और इनके मित्र हाथ में बंदूक लिए खड़ा था। मित्र ने मित्र को समझाया कि तुम चले जाओ ! विवाद तुम्हारे चाचा से है।मित्र की बात मानकर श्यामबिहारी लौटने लगे तो चाचा बसवारी में से छुपकर भतीजे को ललकारा, कसम दिला दिया।फिर क्या था वे लौट पड़े। मित्र ने समझ गया कि अब ज्यादा मित्रता काल बन जाएगी और गोली चल गई, श्यामबिहारी वहीं ढेर हो गए। मित्र भी फौजी था। विधवा की जीवनसंगिनी तब से लेकर 18 जून 23 तक सुनी आंखों में वो भयावह दृश्य नही भूली थी। गांव के नाते वो चाची लगती थी।मिलने पर मैं प्रणाम करता और इस घटना के विस्तृत जानकारी उनकी मुँह से सुनना चाहते थे लेकिन, जब आगे वो कुछ नहीं बोलती थी तो मैं जख्मों को कुरेदना ठीक नहीं समझता था लेकिन जल्द ही इनसे बात कर कुछ अनछुए पहलुओं को जानना चाहते थे लेकिन इतनी जल्दी हो जाएगी कि समय ही नही मिला। इन घटनाओं के खलनायक आज भी जिंदा है, भले ही वो बाबूचक छोड़कर दानापुर में बस गए लेकिन इस के परिवार का एक बाल बांका भी न हुआ।इनसे सिर्फ एकबार मुलाकात पटना में हुई और पहचान भी। उसके बाद न कभी मिला न ख्वाइस रखा।तारीख 23 अगस्त 1965 सोमवार । भारतीय सैनिक पाकिस्तान के लाहौर के पास तक कब्जा कर लिए थे। सूर्यास्त हो गया था । युद्धविराम के सफेद झंडे गाड़ दिया गया था। सूर्यास्त के बाद , युद्धविराम की घोषणा के बाद युद्ध , हमले बन्द हो जाते हैं। बाबूचक के दो लाल जय गोविंद सिंह यादव और श्याम बिहारी यादव भी जीत के तिरंगें गाड़ कर बुलंद इरादों से अपने सैनिक साथियों के साथ कैम्प वापस आ रहे थे।जय गोविंद सिंह यादव को लोग हनुमान कहते थे, ये इतने बलशाली थे कि 4 लोगों को अकेले मार कर गिरा देते थे। पाकिस्तानी सेना इससे खार खाये हुए थे, क्योंकि ये दुश्मनों पर कहर बनकर टूटते थे। पाकिस्तानी सेना युद्धविराम के नियम को तोड़ते हुए इनपर घात लगाए बैठे थे और पीछे से दनादन गोलियां चला दी। विश्वासघाती दुश्मन के शिकार हो गये और भारत माता के सपूत सदा के लिए धरती माँ के गोद में सो गए। गांव के ही परिवार के छोटे भाई श्याम बिहारी यादव के आंखों के सामने घटी घटना से स्तब्ध रह गये । सारी घटनाओं का आंखों देखा हाल सीमा से लौटने के बादअपने गांव बाबूचक में लोगों को वीर की वीरता और शहादत की दास्तान सुनाये थे।
1969 में इस पंचायत के पूर्व मुखिया ने अपनी बंदूक देकर शहीद के परिवार में आपस में तीन हत्या करवा दी इसमें शहीद जय गोविंद सिंह यादव के साथ लड़ने वाले सैनिक श्याम बिहारी यादव की भी हत्या हुई थी, क्योंकि वीर जय गोविंद सिंह यादव के शहादत के चश्मदिल थे। ये लोगों को जय गोविंद सिंह यादव की वीरता को बखान करने वाले जिंदा युद्ध से बच कर आये थे। बड़ी सोची समझी साजिश के तहत वीर की गाथा सुनाने वाले को भी घर में ही अपनों के हाथों खत्म कर दिया गया। यह हत्या श्यामबिहारी यादव की नही बल्कि शहीद की शौर्य वीर की गाथा सुनाने वाले को सदा के लिए नींद से सुलाया गया था। आपसी हिंसा में शहीद जय गोविंद सिंह यादव के साथ युद्ध करने वाले घर पर ही श्यामबिहारी यादव सहित तीन लोगों की हत्या से 1969 में दहल गया था बाबूचक गांव। सब कुछ धूमिल हो गया और तो और इस तिहरे हत्याकांड पर गाना बनाकर चौक चौराहे मेले में गाना शुरू कर दिया और गीत की पुस्तकें बेचना शुरूं कर दिया था " धोखवा से मारल गईलन श्यामबिहारी पहलवानवा हो ...। शहीद की शहादत को गुमनाम करने की साजिश कामयाब हो गया। इस मुकदमें में लोगों के जमीन जायदाद बिक गये, जो पढ़ने वाले थे, सबकी पढ़ाई छूट गई थी। कई को सजाए मौत , कई को आजीवन कारावास हुआ था।इस मुकदमे को देख रहे अधिवक्ता पूर्व सांसद गणेश यादव व अन्य नेताओं के सहयोग से समझौता हुआ और पटाक्षेप हुआ। कल दशकों तक तपस्विनी रही वीर श्यामबिहारी यादव की जीवनसंगिनी भी चली गई।
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