स्वयं का परिचय क्या कम है! -प्रसिद्ध यादव।

   (सूत्रधार का यह निशुल्क विज्ञापन है।इस कहानी से इसे कोई लेना देना नहीं है।आप सभी नियत समय पर शानदार नाटक देखने आएं।हम आपकी प्रतीक्षा व स्वागत में रहेंगे।)


कभी कभी लोग खुद के प्रभावशाली दिखाने के लिए, दूसरों पर धौंस दिखाने के लिए, काम निकलवाने के लिए  शक्तिशाली व्यक्ति के साथ अपना प्रगाढ़ संबंध बताकर अपना परिचय देता है। ऐसा परिचय का मतलब होता है कि स्वम शून्य हैं। कभी कभी लोग यह भ्रम में जीते हैं कि उन्हें कौन नहीं जानता है?कभी सोचा है कि  लोग आपको क्यों जानें?क्या खासियत है आप में ?क्या योगदान है राष्ट्र व समाज के लिए?ये तो दूर की बात है पड़ोसी के साथ ठीक व्यवहार रहता है? नहीं। खुद को प्रसिद्ध समझने का मतलब अन्य को कमतर आंकना। आदमी के हर क्रिया कलापों को समाज मूल्यांकन करते रहता है। कई बार मुझे ऐसे लोगों का पाला पड़ा है और ऐसे डिंग हांकने वाले को मैं रती भर नहीं समझता हूं।  एकबार तो एक आदमी ऐसे ही लम्बा परिचय दिया तो मेरे भतीजा ने जवाब दिया था कि मैं उसका मालिक बोल रहा हूँ और यह सत्य भी था।उसके पैरों से ज़मीन खिसक  गई थी। कुछ लोग बड़े - बड़े राजनेताओं के परिचय देते हैं लेकिन   जगजाहिर है कि कौन क्या करता था ? खुद अगर हम मजदूर हैं तो कहने में शर्म किस बात की?बल्कि गर्व होना चाहिए कि हम अपना परिचय सत्यता के साथ दिया है। इससे आत्मबल बढ़ता है । हम तीसमार खां हैं तो अगला मक्खी मारने वाले नहीं हैं।अगर खुद  के परिचय देने में शर्म आती है तो इसमें शीघ्र सुधार करने की जरूरत है। गीदड़ अगर बाघ की खाल ओढ़ ले तो वो बाघ नहीं बन जाता है। खुद को इतना बुलंद कर कि ख़ुदा पूछे की तेरी रज़ा क्या है? जिसका परिचय हम देकर अपना परिचय देते हैं तो वो फिर हम क्यों नहीं बन जाते हैं? हर पिता चाहते हैं कि उनका परिचय उनके पुत्र के नाम से हो ,लेकिन पुत्र का परिचय पिता के नाम से ही हो रहा है तो कहीं न कहीं पुत्र की कमी है।

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