गरीबी में अस्थिर जिंदगी !-प्रसिद्ध यादव।
सुबह खाये तो शाम की चिंता और शाम खाये तो सुबह की। अगर घर के कमाऊ व्यक्ति बीमार हो गया तो चूल्हा चौका ठंढा हो जाता है। पर्व त्योहार और सामान्य दिनों में कोई फर्क नहीं होता है। ये कब नए कपड़े खरीदे ,याद नहीं होती, पैबंद पर पैबंद जोड़कर किसी तरह तन ढके रहते हैं। ऐसे लोग अधिकांशतः सड़क किनारे, नहर किनारे सरकारी जमीन पर रहते हैं। नगरीकरण में सबसे पहले इनके झोपड़ी उजड़ते हैं। सरकार भूमिहीन को तीन डिसमिल ज़मीन देने की घोषणा की है, लेकिन मयस्सर नही है। हर प्रखंड, पंचायत में कई एकड़ जमीन गैर मजरुआ हैं, उस पर भू माफिया के कब्जा है लेकिन सरकार बांट नहीं रही है।ऐसे जमीन की रिकॉर्ड हर अंचल में है फिर भी सरकार देर क्यों कर रही है? पहले जब कुछ राजनीति दल के लोग ऐसे जमीनों पर लाल झंडा गाड़ देते थे, बहुत खून खराबा होती थी। देश में भूमि सुधार की मांग लंबे समय से हो रही है,लेकिन सरकार भू माफिया, भू स्वामी से डरती है।नतीजा, आज करोड़ों लोग भूमिहीन रहकर,नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं। भू माफिया के संतान आज उसी भूमि को बेचकर विलासिता की जीवन जी रहा है। गांवों में आज भी ऐसे लोगों को बड़ा आदमी के नाम से इज्जत होती है लेकिन व्यवहार नीच से भी नीच होता है। आज भी गांवों में शादी ब्याह करने में जीका जजात, खेती बारी के रिकॉर्ड देखते हैं न की उसकी शिक्षा व चरित्र। जमीन इसलिए कि बुरे वक्त आने पर भी इसे बेचकर जीवन यापन किया जा सकता है। जमीन अब खेती कर के नहीं,बल्कि बेचकर जीवन यापन का साधन हो गया है। ऐसे में भूमि सुधार की सख्त जरूरत है।स्वामीनाथ आयोग की रिपोर्ट में भूमि सुधारों को बढ़ाने पर जोर दिया गया है. अतिरिक्त और बेकार जमीन को भूमिहीनों में बांटना, आदिवासी क्षेत्रों में पशु चराने का हक देना आदि है बिहार में कुल 18 लाख एकड़ तक फैली अतिरिक्त ज़मीनें हैं. ये ज़मीनें या तो सरकारी नियंत्रण में है या भूदान समिति के नियंत्रण में, जिसे बांटा नहीं जा सका है या सामुदायिक नियंत्रण में या कुछ अन्य लोगों के कब्जे में है. आयोग ने इन ज़मीनों को भूमिहीनों में बांटने की अनुशंसा की है.
आयोग की सिफ़ारिश है कि बटाईदारों की रक्षा के लिए एक अलग बटाईदारी कानून होना चाहिए. सिर्फ गरीबी उन्मूलन के नारा से गरीबी नहीं मिटेगी, इसके लिए जमीन पर काम करना होगा।
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