गुलामी की बेड़ियां ! -प्रसिद्ध यादव।

 

  



ये बेड़ियां दिखाई नहीं पड़ती है लेकिन आदमी को ऐसे जकड़ लेती है उम्र भर इससे नहीं निकल पाता है, इससे आगे पुश्त दर पुश्त चलते रहता है। कुछ गुलामगिरी अज्ञानतावश, कुछ लाचारी में और कुछ आदतन है। अज्ञानता की गुलामी से मुक्त किया जा सकता है लेकिन जो आदतन गुलाम है, उसे मुक्ति दिलाना कठिन है।मजबूरी वाली गुलामी समय पर स्वतः मुक्त हो जाता है। गुलाम दिमाग से बनाया जाता है।अच्छे अच्छे ताकतवर गुलामी करते हैं, जबकि गुलाम बनाने वाले शारिरिक रूप से कमजोर होने पर भी ताकतवर को अपने पैरों के नीचे रखते हैं। कभी सोचे हैं कि आखिर ऐसा क्यों होता है? ज्ञान और स्वाभिमान के बिना। जिसके अंदर ज्ञान और स्वाभिमान होगा वो कभी किसी की गुलामी नहीं करेगा। लोग अपनी वजूद को नहीं पहचानते हैं।सबसे अधिक गुलामी कहाँ होती है? दफ्तरों में। जी हुजूरी होती है। उच्च अधिकारी अपने अधीनस्थ सेवकों को देखते हैं कि कौन कितना जी हुजूरी करता है।यह हाल राजनीति में शीर्ष स्तर के राजनेता देखते हैं कि कौन अधिक वफादार है?यह सिलसिला गांव ,समाज से लेकर घर तक चलते रहता है।भले ही घर में कितना भी कमाऊ पति क्यों न हो?पत्नी पति को गुलाम रखना चाहती है और यही से सिलसिला तकरार की शुरू होती है। धर्म के मामले में सबसे अधिक गुलामी है। चाहे कोई धर्म हो।बिना धर्म गुरु के, पुरोहित के घर में एक पत्ता नहीं हिलता है। अगर कोई साहस कर के इसका विरोध किया तो सबसे पहले घर में ही बगावत हो जाता है। धर्म से विशुद्ध लाभ पुरोहित और राजनेताओं को है, क्योंकि इससे इन दोनों के घर और जीवन आबाद है बाकी इसपर चलने वाले को ठनठन गोपाल है। इस गुलामी से निकलना जग जीतने जैसा है। हालांकि धीरे धीरे बहुत बदलाव आया है लेकिन अभी बहुत कुछ करना बाकी है।इसकी सबसे बड़ी बाधा है ,रीति रिवाज, संस्कार, धर्म परायण ,अंधभक्ति आदि।बेड़ियां पैरों में हो ,हथकड़ियां हाथों में हो तो दिखाई देती है लेकिन दिमाग में ही ये बेड़ियां जकड़ लिया गया है तो कैसे दिखाई देगी ? जन्म और मृत्यु के समय आदमी स्वतंत्र रहता है लेकिन  अज्ञानतावश जीवन भर गुलामी करते रह जाता है।जीवन में कुछ अनिष्ट न हो इसका डर, राहु केतु, शनि का प्रकोप न हो इसका डर ,बॉस गुस्सा न हो जाये इसका डर।यही डर आदमी को गुलाम बना कर छोड़ दिया है।जिस दिन मन से डर खत्म हो जाएगा,उसी दिन गुलामी भी खत्म हो जाएगी।खुद निर्णय लेने की क्षमता आ जायेगी।गुलामों में और गुलाम बनाने वाले में सिर्फ दिमाग में सोच का फर्क है।स्वाभिमानी कभी गुलाम नहीं बनते हैं।कभी पिछलग्गू नहीं होते हैं।अपनी तकदीर खुद लिखते हैं।ये हाथों की लकीरों के भरोसे नहीं होते हैं, बाजुओं के बल पर जिते हैं।"" दैव दैव अलसी पुकारे " में विश्वास नहीं करते  हैं। गुलामी से शोषण ,दमन,अत्याचार होता है, मन कुंठित रहता है और यही कुंठा प्रतिकार करे तो क्रांति आ जाती है। जितनी भी क्रांति हुई हैं वो सभी गुलामी के ख़िलाफ़ हुई है और इस क्रांति के नायक आदर्श होते हैं। वे अपनी छाप इतिहास के स्वर्ण अक्षरों में लिख देते हैं।" अतिसय रगड़ी करै सो कोय, अनल प्रकट चंदन ते होय !" इस उक्ति को याद रखना चाहिए।ज्यादा किसी को रगड़ेंगे तो चंदन से भी आग पैदा हो जाएगी ।किताब “गुलामगिरी” में, जोतीराव फुले ने कहा कि हिन्दुस्तान के पर निर्भर शूद्र और अतिशूद्र भारत के मूलनिवासी (नेटिव) हैं, उनके ऊपर राज करने वाले आर्य/ब्राह्मण विदेशी हैं, जो बाहर के मुल्कों से भारत 3000 साल पहले आये और यहाँ के शूद्रों और अतिशूद्रों को ग़ुलाम बनाया। उन ब्राह्मणों ने बहुत ज़ुल्म किया। अपनी ‘श्रेष्ठता’ बनाये रखने के लिए, धर्म और धार्मिक पुस्तकों का सहारा लिया, जिनकी मदद से लोगों को अज्ञानता के अंधेरे में रखा गया। ग़ुलामी की यह बेड़ियाँ “मूलनिवायों” को ह़ज़ारों सालों से जकड़ी हुई हैं।

शिक्षा से अंधकार और आडम्बर मिटती हैं।

इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं है।यह विडंबना ही है कि आज हम चाँद पर कदम रख दिया। आज फिर   पाखंड घर कर रहा है।प्रायोजित तरीके से अंधविश्वास की खाई में धकेला जा रहा है सिर्फ इस पर सवार होकर सत्ता की सिंहासन पर बैठने के लिए और कुछ नहीं है।

Comments

Popular posts from this blog

डीडीयू रेल मंडल में प्रमोशन में भ्रष्टाचार में संलिप्त दो अधिकारी सहित 17 लोको पायलट गिरफ्तार !

जमालुद्दीन चक के पूर्व मुखिया उदय शंकर यादव नहीं रहे !

यूपीएससी में डायरेक्ट लेटरल एंट्री से बहाली !आरक्षण खत्म ! अब कौन धर्म खतरे में है !