साहित्य समागम में 'रंग तरंग 'हास्य काव्य संग्रह का हुआ लोकार्पण !-प्रसिद्ध यादव।

  








केशव प्रसाद मिश्र "आचार्य काका " लिखित  पुस्तक 'रंग तरंग'का लोकार्पण एवम कवि सम्मेलन तथा मुशायरा का आयोजन हुआ।

खगौल ।  द क्राउन उत्सव भवन खगौल में साहित्य समागम व स्मृति पर्व का आयोजन हुआ। सबसे पहले द्वीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का उद्घाटन किया गया इसके बाद कवि केशव प्रसाद मिश्र "आचार्य काकाके तैल चित्र पर श्रद्धा सुमन अर्पित किया गया।  इस अवसर पर आयोजक विनोद शंकर मिश्र ने पिता जी की रचनाओं पर विस्तार से प्रकाश डाला।अधिवक्ता व सूत्रधार के महासचिव नवाब आलम ने साहित्य के प्रति लोगों को लगाव रखने की सलाह दिये। तथा  साहित्यकार राजमणि मिश्र ने बताया कि ये कैसी विडंबना है कि लोगों के होंठों पर मुस्कान लाने वाले कवियों को सम्मान नहीं दिया जाता है। आलिंगन में दूरियां समेट लें . सपने हो अलग अलग सुख की एक अभिलाषा है ,आंसुओं की भाषा एक है, एक पल में एक सदी जीने का शौक है, मुझे तो नींद आती नहीं, कोई सपने दिखा गया।

भारती मिश्रा मंगलाचरण व सरस्वती वंदना सुनाई तथा स्वागत गीत प्रस्तुत की। विभा त्रिपाठी अपने संबोधन में बताया कि हास्य रस एक पूर्ण कविता है। शदल मिश्रा की भी चर्चा की।विनोद शंकर मिश्र को अपने पिता जी की पुस्तक को पुनर्प्रकाशन के लिय सच्चे पुत्र बताई। उपेंद्र नाथ मिश्र ने बताया कि केशव प्रसाद मिश्र जी आज भी अमर हैं।इस समाज से ठहाके और मुस्कुराहट दूर हो गया है। शंभु नाथ ने बताया कि  विनोद जी अपने पिता की खोई अमूल्य संपति को सबके सामने लाए। मुख्य अतिथि ज्योतिंद्र मिश्र ने अपने संबोधन में बताया कि यह कार्यक्रम अद्भुत व अनुपम  है।  आज से 50 वर्ष पूर्व सितंबर महीने में  मिश्र जी गुम हो गए थे।हास्य व्यंग्य लिखना बड़ी कठिन है। व्यंग्य रचनाएं भी कालजयी होती है। इन्होंने हास्य व्यंग्य कविता  सुना है कि बच्चे ने मारा है गच्चा ,थूका हुआ फिर चाट लेंगे ... बुरे फंसे गये हैं, सुशासन के चचा । विनोद जी के पितृभक्ति के लिए साधुवाद दिया।कवि मधुरेश शरण कवि शहंशाह आलम,भरत भूषण पांडेय, राजमणि मिश्र,गोपाल मिश्र ,नूर आलम ,वीर विजय सिंह ,नासर आलम   । मुशायरा की अध्यक्षता कर रहे नूर आलम ने बताया कि हिंदी और उर्दू दोनों भाषा एक दूसरे के पूरक हैं।  अनजान बस्ती।जहां इंसान की उस बस्ती में जहां मुल्ला पंडित हो पर नफरत न बंटती हो  आदमी की जान महंगी है और पैसे सस्ते हो .. नासर आलम ने मुशायरा सुनाया हमारा साथ उसको खल रहा है.. काश वो जुदा न होता,दर्द से दिल भरा न होता .. दूर तक साथ चलते रहते ,काश धोखा न हुआ होता .. वीर विजय  सिंह ने गजल सुनाया  इश्क की राह बड़ी मुश्किल है रोज मैं प्यार लुटाता हूँ।मधुरेश शरण ने आसमान में परिंदे उड़े जा रहे हैं, सूरज को दीपक दिखाने की साहस जुगनू कर रहे हैं। अरविंद श्रीवास्तव ने एक उबाऊ जिंदगी ,बगैर एक स्त्री,इंतजार कविता सुनाया तुम किसी कवि से प्रेम करना और अमर हो जाना  ।भारत भूषण गीत नहीं गाऊंगा कविता से शुरू किया सिर्फ चाय बिस्किट पर कितना बरबराउंगा गीत नहीं गाऊंगा । सोहेल फारूकी ने गजल सुनाया खुदा जाने गली में क्या हुआ है, मेरा बच्चा अभी सोया हुआ है, जो अपने थे पराया हो गया.. तेरे आगे भी सर झुकाएं क्या एक खुदा और बनाये क्या ? अब जमीन पर कहीं पनाह नहीं ,चांद पर घर बनाएं क्या? अपनी पहचान तुमने खो दी है, आईना हम दिखाएं क्या ? जानें ए वक्त कैसी  मुझे सजा देता है

तू छुपाने को छुपाता तो है लेकिन तेरा चेहरा बता देता है, दिल पर मेरी जो गुजरती है, उसे मैं कह देता हूँ, सीखना है तो मोहब्बत की सजा देता है।  मुख्य प्रचार निरीक्षक जनसंपर्क विभाग दानापुर रेलवे तन्विरुल हक ने केशव प्रसाद मिश्र की रचित कविता "आदर्श पति " सुनकर दर्शकों को लोटपोट कर दिया।रविन्द्र मिश्र ने कविता से समा बांध दिया।  इस अवसर पर तबला वादक देवलाल, रंजीत मिश्रा, डॉ के के सिंह, पत्रकार अमरजीत शर्मा सहित सैकड़ों गण्यमान्य उपस्थित थे।धन्यवाद ज्ञापन विनोद शंकर मिश्रा ने किया।


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