जीभ काटने की धमकी देने वाला जी कृष्णय्या की हत्या नहीं कर सकता है क्या ? -प्रसिद्ध यादव।

  ब्राह्मण बड़बोले नहीं


,परिणाम देते हैं।

  सांसद मनोज झा  डिस्क्लेमर के बाद ओमप्रकाश वाल्मीकि की कविता 'ठाकुर के कुंआं' का पाठ कर समाज का सही आईना दिखाया था। समाज की वास्तविक स्थिति को देखने में शर्म कैसी?मनोज झा खुद एक ब्राह्मण परिवार से आते हैं लेकिन राजद के ही विधायक चेतन आनंद के पिता सरेआम धमकी दे दिया कि वे संसद में होते तो झा के जीभ कबाड़ कर आसान को उछाल देते।यह एक सभ्य समाज ,व्यक्ति की भाषा हो सकती है क्या ?इसके प्रतिक्रिया में ब्राह्मण समाज भी बहुत कुछ बोल सकते थे लेकिन वे सबसे बुद्धिजीवी वर्ग हैं।वे बोलकर प्रतिक्रिया देकर ऊर्जा नष्ट करना नही चाहते हैं और ये विश्वास परिणाम में रखते हैं। ब्राह्मणों के खिलाफ देश में अनेक मोर्चा खोला गया लेकिन कोई बाल बांका भी न कर सका और तो और जितने भी राष्ट्रीय राजनीति दल हैं वे सभी के शीर्ष पर यही विराजमान हैं चाहे भाजपा, कॉंग्रेस, टीएमसी ,कॉमनिस्ट, आरएसएस  माले या और दल हो।ये सत्ता में लाने और बेदखल करने की कला को जानते हैं।चाणक्य की नीति को भूल गए क्या?इनकी चोटी को लेकर अपमान किया गया था तो उस वश को विधंश ही कर दिया था।कोई तलवार कटार उठाने की जरूरत नहीं पड़ी थी। राजद को भले ही ब्राह्मण के खिलाफ कुछ लोग समझते हैं लेकिन आज भी मनोज झा,शिवानन्द तिवारी इस दल नीति निर्धारक हैं।मनोज झा कविता को सुनाए थे,कविता की समझ किसको कितनी होती है वो जानें।कविता में अभिव्यंजना, लक्षणा का खूब उपयोग होता है।इसे समझने के लिए हिंदी साहित्य की समझ जरूरी है। सबसे कमजोर व्यक्ति ही किसी को धमकी देता है।मजबूत आदमी परिणाम में विश्वास करता है और वो परिणाम दिखाकर ही दम लेता है।खासकर ब्राह्मणों से बैर ,तीनों लोकों से गोल।ये मूल को ही नष्ट कर देते हैं।चाणक्य कुश में हर रोज मट्ठा चीनी मिलाकर डालते थे, किसी ने पूछा 'आचार्य ये क्या कर रहे हैं?' इसे नष्ट कर रहे हैं.' इसे उखाड़ देते या आग लगा देते ,ऐसे थोड़े कुछ होने वाला है।चाणक्य ने कहा तुम दूसरे कुश में यही काम करो और परिणाम कुछ समय के बाद बताया। सवाल पूछने वाला दूसरे कुश में आग लगा दिया और कुछ को उखाड़ फेंका।कुछ महीनों के बाद उस आदमी को लेकर कुश दिखाने के लिए ले गए।आग से जलने वाली और उखाड़ फेंका गया कुश फिर हो गया था लेकिन मट्ठा से सींचा गया कुश मूल से खत्म हो गया था और इसे मूल से खत्म करने में चींटी ही काफी थी। जड़ मूल से खत्म करने वाले को अपमानित कर कोई फलफूल सकता है असम्भव।

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