समाज की सच्ची तस्वीरे देखने में लज्जा क्यों ?- प्रसिद्ध यादव।
आनंद की रिहाई पर मैं अपने ब्लॉग में सरकार के खिलाफ लिखा था।आज मेरा यकीन सच साबित हुआ।
समाज की सही तस्वीर देखने में लज्जा नहीं आनी चाहिए।वास्तविक चित्रण,वर्णन को देखना ,समझना चाहिए। धूल पड़ी थी चेहरे पर और आईना को साफ कर रहे थे।क्या इससे चेहरे की धूल खत्म हो जाएगी ? सांसद मनोज झा कविता के माध्यम से समाज के आईना दिखा रहे थे, जिस ठाकुरगिरी को खत्म करने की सलाह दे रहे थे, उल्टे शिकार हो गए। सार्वजनिक रूप से नेताओं द्वारा जीभ से लेकर गर्दन काटने की बात कही जाने लगी ।लगातार फोन पर धमकियां मिल रही है।यानी ठाकुरगिरी जारी है और जारी रहेगी।क्या वास्तव में यह ठाकुरगिरी चल पाएगी। याद कीजिए फूलन देवी को एक महिला थी,उसके साथ दरिंदों ने ठाकुरगिरी किया, हश्र याद होगा। ठाकुरगिरी की मानसिकता मन से निकालनी होगी ।अगर कोई समझता है कि मेरे रगों में खून है तो दूसरे के रंगों में पानी नहीं बह रहा है।दलितों, आदिवासियों के साथ कितना अत्याचार हुआ है और हो रहा है।ये किसी से छुपी हुई नही है। दफ्तरों में बड़े ओहदे पर इस समुदाय के बैठे हुए हैं वहां भी यह बदस्तूर जारी है। विद्यालय से लेकर उच्च संस्थानों, कार्य स्थल पर भी भेदभाव के दंश झेलते हैं। जातिसूचक नाम , गालियां दी जाती हैं। इनके आदेशों को मानने में भौं नाक सिकुड़ाते हैं। ये सब करने की छूट चाहते हैं या इसे जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं?अगर ऐसा समझते हैं तो स्वप्न देख रहे हैं।शिक्षा ,ज्ञान का अब सवेरा हो गया है, अंधेरा छंट गया है।कोई अंधेरा कायम करना चाहते हैं तो असम्भव है।
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