भारत की लाईफ लाईन चालकों के बिगड़ती लाइफ़ !
भारतीय रेल भारत की लाइफ लाइन कही जाती है। भारतीय रेलवे के स्वामित्व में, भारतीय रेलवे में 12147 लोकोमोटिव, 74003 यात्री कोच और 289185 वैगन हैं और 8702 यात्री ट्रेनों के साथ प्रतिदिन कुल 13523 ट्रेनें चलती हैं। भारतीय रेलवे में 300 रेलवे यार्ड, 2300 माल ढुलाई और 700 मरम्मत केंद्र हैं। 2.30 करोड़ यानी 23 मिलियन यात्री भारतीय रेलवे में रोज सफर करते हैं. जितनी ऑस्ट्रेलिया की जनसंख्या है, लगभग उतने ही मुसाफिर रोजाना भारतीय रेल में सफर करते हैं. इतने यात्रियों के लिए रेलवे रोज 12617 ट्रेनें चलाता है. देशभर में 7172 स्टेशन रेलवे नेटवर्क से जुड़े हैं.. 26 हजार करोड़ रुपये वो रकम है, जिसका नुकसान रेलवे को हर साल यात्री किराए में मिलने वाली सब्सिडी से होता है.
67 फीसद योगदान रेलवे की कमाई में माल भाड़े का होता है. भारतीय रेल रोजाना 26.5 लाख टन माल ढोती है.
1.40 लाख करोड़ रेवेन्यू रेलवे हर साल अर्जित करता है, जो इंडियन ऑयल कारपोरेशन और ओएनजीसी जैसी कंपिनयों के रेवेन्यू से कम है. 1.82 लाख करोड़ रुपये की जरूरत रेलवे के 359 अटके हुए प्रोजेक्ट्स के लिए है. पिछले तीस सालों में जिन 676 प्रोजेक्ट्स की घोषणा हुई थी, उनमें से 317 ही 1.58 लाख करोड़ रुपये की लागत से पूरे हो पाए हैं. इतनी बड़ी लक्ष्य हासिल रेलवे के अधिकारियों व कर्मचारियों से संभव हो पाता है।इसमें सबसे प्रत्यक्ष भूमिका रेल चालकों की होती है।इनकी जरा सी भी चूक से बड़ी जान माल की क्षति पहुंचती है।
रेल मंत्रालय ने अपने सभी जोन में आदेश दिया है कि ट्रेन चालकों को क्या समस्याएं हो रही हैं, उनपर काम का कितना दबाव है, अगर उन्हें कोई बीमारी है तो वे नियमित तौर पर उसकी दवा ले रहे हैं या नहीं, इन सारी बातों का विस्तार से उल्लेख करने को कहा गया है। उल्लेखनीय है कि अतीत में छोटे-बड़े कई ट्रेन हादसों की जांच में ट्रेन चालकों की लापरवाही सामने आ चुकी है। इसकी एक प्रमुख वजह ट्रेन चालकों पर अतिरिक्त शारीरिक व मानसिक दबाव बताया गया है। रेल कर्मचारियों के संगठन की ओर से भी बार-बार इस मुद्दे को उठाया जाता रहा है।.
रेलवे सूत्रों के अनुसार जरुरत की तुलना में ट्रेन चालकों की संख्या बहुत कम है, जिसके कारण उन्हें निर्धारित से काफी ज्यादा समय तक काम करना पड़ता है। निर्धारित स्टेशनों पर ट्रेन चालकों के लिए बने विश्राम गृहों की स्थिति काफी खराब है इसलिए उन्हें ठीक से आराम नहीं मिल पाता। इन कारणों से वे शारीरिक व मानसिक बीमारियों से ग्रस्त हो रहे हैं। इनमें उच्च रक्त चाप, अनिद्रा, मधुमेह, अपच, मानसिक तनाव प्रमुख हैं।
उल्लेखनीय है कि एक ट्रेन चालक को प्रशिक्षित करने में काफी खर्च आता है। चालकों के बीमार पड़ने अथवा उनकी कार्य क्षमता कम होने से रेलवे को काफी नुकसान होता है।
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