चेहरे से नकाब क्या उतार दिया दिल घायल ही कर दिया। -प्रसिद्ध यादव।

  चेहरे से नकाब क्या उतार दिया

दिल घायल ही कर दिया।


मासूम चेहरे पर होंठो की लाली 

आंखें सुरमई, अंग छुईमुई

जुल्फ़ें घटा घनघोर 

जैसे फिरे चकोर 

न मेरी नजरों से वो लम्हें विसृत होते

न रातों में नींद आती 

आखिर तेरी इस अदाओं को क्या समझूँ ?

इसे प्यार समझूँ या हुस्न की जलवा ?

घायल दिल तड़पता सिर्फ आहें भरता 

न जीता न मरता 

सिर्फ तेरी सज्दा करता 

कभी बलखाती चलती 

कभी कोयल सी कुकू करती 

काश !एक बार खुलकर कहती

मैं तुझसे प्यार करती 

एक पल में  सदियों तक जी लेता।

तेरी बांहों में जन्नत पा लेता

मेरा बिगड़ा हुआ जीवन संवर जाता 

तुझे पलकों पे बिठाए रखता 

सितारे तोड़ कर लाते आसमां से 

चांद पर अपना आशियाना बनाता 

दुनिया के नजरों से दूर 

अपने दिल में बसाये राखत 

अपनी सांसों की धड़कन बना कर रखता।

चली क्या मटक कर 

दिल बाग बाग हो गया।

चेहरे से नकाब क्या उतार दिया

दिल घायल ही कर दिया।

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