हँसी-ठिठोली के बीच 50 गालियां !-प्रसिद्ध यादव।
सुबह की मॉर्निंग वॉक में हंसी ठिठोली, हास्य व्यंग्य न हो तो फिर टहलने का क्या फायदा? सुबह अपने घर से करीब 5 किमी की मॉर्निंग वॉक में जाता हूँ। मूलतः 5-6गांव के लोग मिलते हैं और कुछ खगौल के लोग।मुलाकात होते ही अपने अपने हिसाब से अभिवादन होता है।ज़्यादा तर मैं गुड मॉर्निंग का ही प्रयोग करता हूँ, लेकिन कोई मुझे जय श्री कृष्ण, जय श्री राम बोलते हैं तब मुझे बुद्धाय नमो कहना पड़ता है। इसी अभिवादन में पहचान, विचार भी मालूम हो जाता है।कोई जय भीम,कोई वाले कुम सलाम भी बोलते हैं।
एक मेरे मित्र के बहनोई जमालुद्दीन चक के हैं।बड़े ही जेंटल है।उनके साथ एक मौलवी साहब घूमते हैं।मेरे गांव के पहले तक घूम कर लौट आते हैं।एक दिन हम अपने टोली के साथ घूम रहे थे ,उसमें महम्मदपुर के कई शर्मा जी भी थे।मैं उस मित्र के बहनोई की ओर इशारा करते हुए मौलवी साहब को चेतावनी भरे लहजे में कहा - मौलवी साहब! आदमी देखकर घुमा करिए नहीं तो इस आदमी के चक्कड़ में आप भी 50 गली सुन जाएंगे। इतना सुनते ही सब लोग दंग रह गए।हम अपने टोली के साथ आगे बढ़ गए और मौलवी साहब भी दोस्त के साथ निराश मन से आगे बढ़ गए।शायद ये सोचते हुए की ऐसी क्या बात है।मेरे टोली के लोग भी मुझे बोलने लगे- ये लोग निहायत शरीफ लोग हैं, ऐसे आपको नहीं बोलना चाहिए था।मैं सिर्फ इतना ही कहा कि इसका जवाब उस महतो जी से पूछ लीजिएगा। मौलवी साहब को जवाब महतो जी दे दिए तो हंसने लगे, दूसरे दिन मेरे दोस्तों को भी जवाब मिल गया।महतो जी बोले कि इन्हें मुझे गाली देने का एकाधिकार है। मैंने कहा-मैं गाली किसी को देता ही नहीं हूं।कुछ तो बिता भर के गाली देते हैं।मित्र नवाब आलम जी के मिलते हैं, सारे मित्रों की छुट्टी हो जाती है।
कितनी आत्मीयता लगती है। जब अन्य धर्मों के, जाति के, गांवों के एक साथ हंसी ठिठोली करते हैं।यह सौभाग्य है।हम बड़े बड़े बंगलो में साहेब को घूमते देखा है।पत्नी भी साथ घूमती है तो नाक चढ़ी रहती है और भौं तनी रहती है।जब तक साहेब मैडम की मन की मुराद पूरी नहीं करते तब तक चढ़ी हुई आंखें मृगनयनी नहीं होती। खुशियों को मुफ्त में भी ले सकते हैं बशर्ते इसके लिए बड़ा दिल चाहिए।
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