गांधी जयंती समारोह में बद्री अहीर भी!-डॉ सकलदेव सिंह
महंत बड़ाई दास नथुनी सिंह उच्च माध्यमिक विद्यालय जादोपुर बिहिया भोजपुर में गांधी जयंती समारोह आयोजित किया गया जिसमें उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए प्रभारी प्राचार्य डॉ सकल देव सिंह ने कहा कि ब्रिटेन के साम्राज्यवादी व्यवस्था के तले हिंदुस्तान तबाह था,हिंदुस्तानियों को रक्त निचोड़ा जा रहा था, उस उपनिवेशवादी सिकंजों को तोड़ना जरूरी था।जरूरत इस बात का था कि कोई मार्गदर्शक हो,उसी परिप्रेक्ष्य में महात्मा गांधी का पदार्पण २ अक्टूबर 1869 को हुआ।
अध्यापन के उपरांत मात्र २४ वर्ष की अवस्था में दक्षिण अफ्रीका में जाते हैं जहां वे वकील का पेशा में लग जाते हैं।
विद्यालय से मात्र 3 किलोमीटर की दूरी पर हेतमपुर गांव प्रखंड जगदीशपुर ,जिला शाहाबाद( अब भोजपुर) के मूलनिवासी बद्री अहीर १८६० में जन्मे,१८८२ में गिरमिटिया के रूप काम करने हेतु दक्षिण अफ्रीका पलायन कर चुके होते हैं। बद्री अहीर की मुलाकात मोहन दास करमचंद गांधी से होता है। कुछ ही दिनों में वे दोनों एक दूसरे के काफी करीबी हो जाते हैं।
दक्षिण अफ्रीका में में गोरे और काले का रंग विभेद हेतु जेल में जाते हैं तो बद्री अहीर प्रथम भारतीय भी गांधी जी के साथ जेल में जाते हैं।
जो भूमिका भामाशाह ने महाराणा प्रताप से निभाया था,नेता जी सुभाष चंद्र बोस के साथ यूसुफ बरफानी ने अपनी भूमिका निभाया था ठीक उसी प्रकार बद्री अहीर ने महात्मा गांधी के साथ निभाया था ।
उस जमाने में बद्री अहीर ने महात्मा गांधी को निरामिष भोजनालय चलाने के १००० हजार पौंड रुपए दिया था।
बद्री अहीर बहुत ही नेक दिल के इंसान थे। चंपारण आंदोलन को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभानेवालों में बद्री अहीर का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित है।
गांधी जी अपने आत्मकथा के अध्याय १५ ,पृष्ठ संख्या २७२·–२७३ क्रमशः अंतिम एवं प्रथम अनुच्छेद में लिखा है कि " बिहार से गिरमिट में आए हुए भारतीय थे जो पीछे मुक्त होकर व्यवसाय करने लगे थे। भारतीय ने अपने विशेष कष्टों को दूर करने के लिए स्वतंत्र भारतीय मंडल से अलग एक मंडल की स्थापना की थी। उनमें से कुछ सच्चे दिल के उदार भावना वाले और चरित्रवान भारतीय भी थे। उनके अध्यक्ष का नाम श्री जयराम सिंह था एक अध्यक्ष न होते हुए भी अध्यक्ष के समान दूसरे सज्जन थे बद्री अहीर । श्री बद्री अहीर से तो मेरा( गांधी जी) बहुत कम पड़ा था।और मैं उनका अटॉर्नी( वकील) ही नहीं बल्कि "भाई" बनकर रहा । मुझे वह "भाई" कहकर पुकारने लगे । वह नाम दक्षिण अफ्रीका में अंत तक रहा और उन्होंने यह भी लिखा था कि वह मुवक्किल बद्री अहीर विशाल हृदय का विश्वासी था।
महात्मा गांधी का इतना नजदीकी होने के उपरांत भी इतिहास के पन्नों में बद्री अहीर को स्थान नहीं दिया जाना न्यायोचित नहीं है।
वर्ष २०२३ से इनकी स्मृति दिवस और जन्म दिवस मनाया जा रहा है। उनके परपौत्र प्रमोद कुमार बद्री के सौजन्य से और मेरे उत्साह से प्रारंभ किया जा चुका है।
गांधी जयंती समारोह में अगर बद्री अहीर की भी व्यक्तित्व और कृतित्व की चर्चा नहीं की जाती तो गांधी जयंती फीका पड़ जाता। सम्पूर्ण विद्यालय परिवार ने इस समारोह में हिस्सा लिए।
डा सकलदेव सिंह
प्रभारी प्राचार्य
महंत बड़ाई दास नथुनी सिंह उच्च माध्यमिक विद्यालय जादोपुर बिहिया भोजपुर।
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