योगी को मुख्य यजमान न होने का मलाल !😢-प्रसिद्ध यादव।

  

घोर कलियुग आ गया प्रभु! हे! धनुषधारी! आपकी प्राण प्रतिष्ठा हो आपके वंशज मुख्य यजमान, यजमान की बातें छोड़िए, अतिथि होने का भी सौभाग्य प्राप्त नहीं हो रहा है।प्रोटोकॉल के हिसाब से, ग्रंथों के हिसाब से मुझे मुख्य यजमान होना चाहिए था लेकिन हम वहां पर अतिथि भी नहीं बन रहे हैं।सबसे बड़ी विडंबना है कि जिसे हमारे धर्म ग्रंथों में छूत माना है, जिसे सन्यासी होने का अधिकार नहीं है वो मुख्य यजमान बन रहे हैं।घोर कलियुग!प्रभु। इतना कहते कहते उस फकीर योगी की आंखें डबडबा गई। उनके गुरु ने समझाते हुए कहा कि यह कलियुग का प्रभाव नहीं, अम्बेडकर का ,संविधान का प्रभाव है।फकीर ने कहा कि- इस पर धर्मशास्त्र होना चाहिए, चारों शंकराचार्य को विरोध करना चाहिए।यह धर्म, शास्त्र अनुकूल नहीं हो रहा है। गुरु ने कहा कि -अगर शास्त्र निकाल दिया तो तू भी यजमान के लायक नहीं रहेगा। वो कैसे गुरुवर? तुम क्षत्रिय हो ।तुम्हारा काम युद्ध करना था,न कि राज करना।राज करना हम श्रेष्ठ जनों मनुपुत्रों का है। बेचारा सुनकर सन्न रह गया।गुरु ने कहा कि याद करो जब देश के कलमजीवी राष्ट्रपति बने थे तब हमारे पुरखों ने शास्त्र निकाला था तो वो भी नीच जाति में आता था।उसका काम मुनिबगिरी करना था,न कि राज चलना।तब अम्बेडकरवादी इतने हावी नहीं थे,तब हम मनुपुत्रों ने  काशी में जल समाधि लेने की स्वांग रचे थे। पंडित नेहरू दौड़कर हमलोगों के पास आये और संविधान का हवाला दिया।तब हमलोग उपाय बताया कि हम 101 मनुपुत्रों के गंगा जल से चरण धोकर उसका अमृत पान करेगा तो हमलोग मानेंगे।नेहरू ने न चाहते हुए भी कलमजीवी से ऐसा करवाया गया था।देश के कई बड़े बड़े नेता हमारे मूर्तियों को छू देता था, मंदिर में प्रवेश कर लिया था।हम विरोध तो नहीं किया लेकिन उसे गंगाजल से पवित्र कर यह अपनी श्रेष्ठता का परिचय दे ही दिया था।तब बात कुछ और थी।अब बात कुछ और हैं। गुरु गुस्से में बोले- मुझे तो इस मुख्य यजमान पर उसी दिन शक हो गया था जब कुंभ मेले में हम मनुपुत्रों के चरण न पखार कर भंगियों के चरण धोए थे।उसी दिन अपने धर्म का नाश हो गया था लेकिन हमलोग चुप रहे।जानते हो क्यों? क्योंकि इसके कंधे पर रखकर संविधान बदलकर मनुसंहिता लागू करवाना था लेकिन अब यह सम्भव नहीं लगता है।शायद यह जान गया है कि अब राजा रानी की पेट से नहीं,मताधिकार से होता है और यह संविधान हटाकर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी नहीं मारना चाहते हैं। जब हमारे विद्वान लोगों को मार्गदर्शक मंडल में भेज दिया था।कैसे वे लोग फूटफूटकर रोते थे,तब कहाँ गया था लोग?अब भुगतो। ऐसे भी सन्यासी तुम उसके उत्तराधिकारी समझते हो, कहीं तुम्हें भी मार्गदर्शक मंडल में शामिल न कर दे।अब मुख्य यजमान बनने का सपना देखना बन्द करो।मुझे लगता है कि अम्बेडकर की वापसी हो रहा है।संघ विरोध कर रहा है साहेब का ,लेकिन दबी जुबान से।अब कलेजे पर पत्थर रखो।

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