दिल चुरा कर न हमको बुलाया करो - गोपाल सिंह नीरज ।

   दिल चुरा कर न हमको बुलाया करो 


गुनगुना कर न गम को सुलाया करो,


दो दिलों के मिलन का यहाँ है चलन

खुद न आया करो तो बुलाया करो,

रंग भी गुल शमा के बदलने लगे

तुम हमीं को न कस्में खिलाया करो,


सर झुकाया गगन ने धरा मिल गई

तुम न पलकें सुबह तक झुकाया करो,

सिंधु के पार को चाँद जाँचा करे

तुम न पायल अकेली बजाया करो,


मन्दिरों में तरसते उमर बिक गई

सर झुकाते झुकाते कमर झुक गई,

घूम तारे रहे रात की नाव में

आज है रतजगा प्यार के गाँव में


दो दिलों का मिलन है यहाँ का चलन

खुद न आया करो तो बुलाया करो,

नाचता प्यार है हुस्न की छाँव में

हाथ देकर न उँगली छुड़ाया करो


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