रचना ही अमर कृति है।-प्रसिद्ध यादव।
( आज मेरा 2500 ब्लॉग्स पूरा हुआ। आप सभी को हृदय से आभार !)
बड़े -बड़े राज राजवाड़े ,बादशाह चले गए । महल,अटारी कुछ खंडहर तो कुछ नेस्तनाबूद हो गए। पूरी उम्र जिसके लिए चोरी,डकैती, लूट,भ्रष्टाचार करते रहे, वो घर में एक तस्वीर भी नहीं टांग कर रखा है।कहाँ चले गए रियासत, रौब , हुक्म ? कोई नाम लेने वाले नहीं है। लेकिन सदियों पूर्व आज भी दुनिया उन फकीरों को याद करती है जो इस दुनिया को अपने कृत्यों ,रचनाओं, अनुसंधान, खोज ,कल्पनाओं ,आविष्कारों ,स्वर,चिंतन मनन ,योग्य,ध्यान,आध्यात्म ,विचारों, दर्शनों से धन्य कर दिया। इनके देन आज भी मील का पत्थर साबित है। आज हमारे सामने जो भी प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष रूप से मिला है, जिसका उपयोग, उपभोग कर रहे हैं, वे सभी उन मनीषियों की ही देन है जो परमार्थ में निरंतर काम किये थे। हर व्यक्ति के अंदर कुछ न कुछ मौलिक रचना करने की क्षमता होती है लेकिन आज अर्थोपार्जन के युग में यह प्रथमिकता में नहीं रहा।नतीजा, आज लोगों की खुशी लुप्त होती जा रही है। साहित्य,संगीत जीवन में ऐसा रस भर देता है कि जो इसका स्वाद चख लिया तब फिर इसके सामने सब फीका पड़ जाता है।गीत संगीत,नाटक ,हास्य ,परिहास जीवन का महत्वपूर्ण अंग है ।लोग मनमुग्ध ,आत्मविभोर हो जाते हैं लेकिन विलासिता पूर्ण जीवन जीने के आदि हुए लोगों को कौन समझाए? कबीर बुनकर के काम करते हुए, रैदास जूते चप्पल बनाते हुए, शेक्सपियर तबेला में काम करते हुए जो दुनिया को साहित्य का अनुपम उपहार दे दिए जो अन्यत्र दुर्लभ है। आज हमारे जीवन में जो कुछ भी है वो समाज से ग्रहीत किया हुआ है लेकिन हम समाज को आज क्या दे रहे हैं?सिवाय परिवार के। महापुरुषों को सिद्दत से याद करने की फुर्सत भी नहीं है फिर आपको कौन याद करेगा? सृजनकर्ता को हर चीजों में सृजन नज़र आती है। प्रकृति के सान्निध्य में रहकर अनगिनत रचनाएं हुई हैं।पर्वत,जंगल ,नदी ,झड़ने,बादल, बारिश ,,हवा की सनसनाहट ,चांद की चाँदनी सूर्य की लालिमा ,लहलहाती फसलें,चिड़ियों की चहचहाहट,भौंरे की गुनगुनाहट , पायल की झनझन की आवाज़ ,मोर पंख, नृत्य,जल की कलरव ,कोयल की कूक ,पपीहे की हुक ,हवा की झोंके आदि हमें जीवन की गीत सुनाते हैं।सुनकर मन आह्लादित हो जाता है। इन गीतों को सुनें और अपनी रचनाओं में पिरोएं।
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