मनुराज की आहट ! खुशियों से नाचो। फुटबॉल की तरह फ़ेंकाओ! -प्रसिद्ध यादव।
बड़ी मुश्किल से सदियों की मनुवाद की गुलामी की बेड़ियों से हमारे महापुरुषों ने मुक्ति करवाया था लेकिन आज धर्म के बहकावे में आकर कोई खुद कटने मरने के लिए तैयार है तो उसे कौन समझा सकता है। छुआछूत, भेदभाव, ऊंचनीच ,अमानवीय कुकृत्य ही पसंद है, उसके मानसिक गुलामी से कौन मुक्त कर सकता है।हिन्दू धर्म के आर में ब्राह्मण राज की स्थापना करने की साजिश एक अदना सा आदमी समझ रहा है लेकिन तथाकथित बुद्धिजीवी अपने पद की लीलुप्ता में अनेक को झांसे में डाले हुए हैं। मंदिर के पुजारी में सौ फीसदी आरक्षण सिर्फ ब्राह्मणों को सदियों से मिला हुआ है लेकिन ये दिखाई नहीं देता है। कुछ बहुजन अपनी दुर्दशा की पुनरावृत्ति करने पर उतारू हैं तो क्या करे? बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर, ज्योति बा फुले ,सावित्री बाई, कबीर,रैदास के विचारों का, संघर्षों का ऐसे लोगों के लिए कोई महत्व नहीं है।खुद गुलामी की जिंदगी जियेगा और आनेवाली पीढ़ियों को भी रसातल में भेजेगा।
काशी विश्वनाथ मंदिर के पुजारी और सेवादार कर्मचारियों को अब सरकारी कर्मचारियों की तरह सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी। उनके वेतन में वृद्धि होने के साथ प्रमोशन का लाभ मिलेगा। उन्हें अवकाश के भी सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी। इसके लिए सेवा नियमावली तैयार की गई है। जब आदमी अंधभक्ति में मशगूल हो जाता है, उसे कोई नहीं समझा सकता है।वे मूढ़ प्राणी होते हैं। सांसद को मंत्री को फुटबॉल की तरह घुमा कर फेंक दे रहा है लेकिन आत्मसम्मान नहीं जाग रहा है क्योंकि आत्मसमर्पण हो गया है।
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