इसरो प्रमुख एस सोमनाथ की संघर्ष भरी जीवन 👌 !


 गरीबी, तंगहाली में भी अपनी प्रतिभा, संघर्ष के बदौलत कोई कैसे दुनिया में अपनी कामयाबी की झंडा फहरा सकता है ।यह इसरो प्रमुख एस सोमनाथ के जीवन से हर किसी को प्रेरणा लेना चाहिए। कॉलेज के दिनों में उनके पास रहने के लिए ढंग का मकान नहीं था. वह हॉस्टल की फीस और दूसरे खर्चे जुटाने के लिए बस की बजाए खटारा साइकिल से कॉलेज आया-जाया करते थे.  होस्टल की फीस नहीं होने के कारण छोटे लॉज में रहकर पढ़े थे।इसरो प्रमुख एस. सोमनाथ की आत्मकथा केरल स्थित लिपि प्रकाशन से प्रकाशित है।. यह किताब एक गरीब गांव के युवा की गाथा है, जिसमें उनकी इसरो के माध्यम से विकास, वर्तमान प्रतिष्ठित पद तक पहुंचने और चंद्रयान-3 प्रक्षेपण तक की उनकी यात्रा की कहानी है.   सोमनाथ ने बताया है कि उनकी आत्मकथा, वास्तव में एक साधारण ग्रामीण युवा की कहानी है, जो यह भी नहीं जानता था कि उसे इंजीनियरिंग में दाखिला लेना चाहिए या बीएससी में. वह युवा तमाम दुविधाओं से जूझता है और कई सही फैसले लेता है और अपना मुकाम बनाता है. उनका मानना है कि, ‘इस पुस्तक का उद्देश्य उनके जीवन की कहानी को पढ़ाना नहीं है, बल्कि इसका एकमात्र उद्देश्य लोगों को जीवन में प्रतिकूलताओं से जूझते हुए अपने सपनों को पूरा करने के लिए प्रेरित करना है’.अगर आदमी के अंदर जज्बा हो, संघर्ष करने की क्षमता हो तो वो चांद पर भी अपना आशियाना बना सकता है। धन साधन हो सकता है, साध्य तो मनुष्य ही है।


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