माँ चेहरे को पढ़ लेती है !-प्रसिद्ध यादव।
ज्येष्ठ पुत्र होने के नाते हम अपने सभी भाइयों में अधिक मातृत्व की छांव में रह रहा हूँ। सुबह उठते माँ पर नजरें पड़ जाने के बाद फिर कोई अन्य देव की जरूरत मुझे नहीं पड़ती है।आज माँ इस उम्र में भी हमलोगों के लिए जिउतिया व्रत उपवास रखी थी।सुबह सुबह गले में माला अपने हाथों से पहनाई ।इस अलौकिक सुख को मैं व्यक्त नहीं कर सकता हूँ।आज जो भी कुछ हूँ।माँ के बदौलत हूँ वरना मेरी हस्ती ही क्या है?यह सुख आजीवन मिलती रहे यही कामना है।
माँ भले ही अनपढ़ ही क्यों न हो, लेकिन वो अपने संतान की चेहरे देखकर पढ़ लेती है कि उसकी संतान खुशी में है कि गम में है, खाये है कि नहीं,पॉकेट में पैसे है कि नहीं।शायद इतनी पारखी नज़र और किसी मे नही होती है। बहुतेरे संतान माँ की ममत्व की छाँव से दूर कहीं और भौतिक सुखों में तल्लीन रहते हैं ,माँ याद भी नहीं आती होगी,बात करना तो दूर की बात है लेकिन माँ हर समय अपने संतान की फिक्र में रहती है।किसी न किसी सूत्र से वो उसकी ख़बर लेते रहती है। माँ की हाथों के स्पर्श मात्र से मन प्रफुल्लित हो जाता है। माँ की नज़र औरों की तरह बेटे की जेब पर नहीं होती है, बल्कि उसकी सेहत और सीरत पर होती है। खुद भूखे रहकर अपने संतान को खिलाने वाली इस धरती पर सिर्फ माँ ही होती है। अपने पुत्र की दीर्घायु व स्वस्थ्य रहने के लिए जिउतिया जैसे कठिन पर्व करती है। आज के आधुनिक युग में युवाओं को यह भान रहना चाहिए कि मेरे वजह से माँ की आंखों से आंसू न बहे। माँ का आशीर्वाद जिसके पास होता है वो कभी दीन हीन हो ही नहीं सकता है। आज कुबेरपति भी माँ के आशीर्वाद के बिना कष्टों में है।माँ के चरणों के आगे कोई देवी देवता, तीर्थ यात्रा नहीं है।माँ की मुख से निकली हुई कामना व आशीर्वाद कभी निष्फल नही होता है।इस ब्रह्मांड में कोई शक्ति स्वरूपा है तो वो जन्म देने वाली माँ ही हैं।पुत्र कुपूत हो सकता है लेकिन माता कुमाता कभी नहीं होती ,ऐसा अक्सर सुना जाता है।जबतक माँ का सान्निध्य प्राप्त हो तब तक इस मातृत्व का अलौकिक सुख की अनुभूति करें।बड़े नसीब वाले होते हैं जिन्हें यह सुख मिलता है।इस दुनिया में लाखों लोग अपने मिल जाएंगे ,अपने हो जाएंगे ,परन्तु जिगर के टुकड़े तो सिर्फ माँ की ही होंगें।
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