कहो ठगेन्द्र ! क्या हाल है? ( कविता ) -प्रसिद्ध यादव।
चारों तरफ फैला झूठा लवार है।
धर्म की पट्टी बांधों आंखों पर
नफ़रत निकले जुबां पर
न याद आये बेरोजगारी
न जिल्लत, न भुखमरी
न शिक्षा ,न चिकित्सा
हाथों में कलम की जगह
बरछी कटार है।
चारों तरफ फैला झूठा लवार है।
अपनी जूती, अपने सर
ऐसा उपाय है
जो समझाये इन मूर्खों को
उसके लिए सलाखें तैयार है।
चारों तरफ फैला झूठा लवार है।
सदियों से है राज हमारा
कैसे जाने दें ,वर्चस्व हमारा
जाति ,धर्म में बांट - बांटकर
सबको बंटाधार करो
कुछ गुल खिलाएंगे नया
इसके लिए तैयार है।
चारों तरफ फैला झूठा लवार है।
सपने दिखाओ बड़ी - बड़ी
फिर मारो लात
सबको लो विश्वास
फिर करो विश्वासघात ।
हम जुमलेन्द्रों की यही है इतिहास
झूठ ,कपट ,पाखंड ,स्वांग
बसते अंग - अंग
रोम - रोम में है विष भरा
हम माफिवीर ,मुखबिर , तमाशबीन
छल कपट का संसार है।
चारों तरफ फैला झूठा लवार है।
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