छठ पूजा अंतःकरण को शुद्ध करने का पर्व है!प्रसिद्ध यादव
" पेनहु न बलम जी पियरिया दउरा घाटे पहुंचाई , आंधर अहुये रे बटोहिया ,दउरा छठी माई के जाई ..." आदि फोक छठ गीत अंतर्मन को छू लेता है। कितना पवित्र मन से ,सेवा भाव से अपनापन के साथ, बिना भेदभाव के इस पर्व को मानते हैं। समर्पण, त्याग,तपस्या, मनोकामनाएं ,सुख ,समृद्धि की कामनाओं से लबरेज पर्व है।छठ पूजा कृषि ,प्रकृति के साथ ही अंतःकरण को शुद्ध करने का पर्व है।यह बिना कोई तामझाम,पुरोहित के स्वयं की पूजा है।यह पूजा निरोग,अन्न धन ,सुख शांति के लिए किया जाता है।इसमें सेवा व सहयोग की प्रधानता होती है। पूजा के साथ-साथ प्रकृति का भी हमारी संस्कृति में बहुत बड़ा योगदान है. जिसका आदर्श उदाहरण 'पूजा' है जिसमें प्रकृति की चीजों का पूरी तरह से उपयोग किया जाता है जैसे फूल, फल, आम के पत्ते, केले के पत्ते, चावल, पान के पत्ते, नारियल, गन्ना, हल्दी, चंदन आदि. सांस्कृतिक रूप से, पूजा की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है इसकी सादगी, पवित्रता और प्रकृति के प्रति प्रेम.पूजा के बाद भी केले के पत्तों में प्रसाद और भोजन परोसा जाता है. केले का प्रयोग ज्यादातर फलों में किया जाता है क्योंकि केला एक ऐसा फल है जिसमें बीज नहीं होते हैं, यह सभी पर्वों में महान पर्व है। जिसमें प्रत्येक व्यक्ति साफ सुथरा जीवन जीने का प्रयास करता है। पर्व में व्यक्ति घरों के साथ ही अपने आसपास साफ-सफाई करता हैं। साफ सफाई से मतलब हैं कि अंदर के गंदगी को साफ करना न कि सिर्फ बाहरी कचरे को साफ करना। छठ पर्व से हमें यही संदेश मिलता हैं कि यह मर्यादा का पर्व है। मनुष्य को यह शिक्षा लेनी चाहिए कि अपने जीवन में मर्यादा को विशेष महत्व देना चाहिए। मर्यादा ही मनुष्य को समाज में अच्छा मुकाम पर पहुंचाता हैं। व्यक्ति को चाहिए कि विषम परिस्थितियों में भी अपने मर्यादा को बनाए रखें। जिस प्रकार बिना जल का नदी का कोई अस्तित्व नहीं है। उसी प्रकार बिना मर्यादा का मनुष्य का कोई अस्तित्व नहीं है। मर्यादा का पतन नहीं करना चाहिए। छठ पर्व में खानपान में भी शुद्धता रखते हैं। इसका अनुसार पूजा के बाद भी करना चाहिए। छठ पर्व पर प्रतीज्ञा करनी चाहिए कि शुद्ध आचरण व व्यवहार का निर्वहन करें।
काश!यही भावना हर दिन लोगों के दिल में होता।
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