मिटे तिमिर धरा से , ऐसी हो दीवाली । ( कविता ) -प्रसिद्ध यादव।
निकले प्रकाश पुंज , हो जगमग ज्योति
मिटे तिमिर धरा से , ऐसी हो दीवाली ।
असमानता मिटे ,दुख के बादल छंटे
न भय ,न शोषण ,न दोहण हो
अज्ञानता की न हो रात काली ।
मिटे तिमिर धरा से , ऐसी हो दीवाली ।
हर चेहरे पर मुस्कान हो
हर घर में धन -धान्य हो
जहाँ अपना - पराया का न भेदभाव हो
ऊंचनीच का न लेस मात्र का भाव हो
कहीं न कोई अभाव हो
हर घर में विकास की हो लाली ।
मिटे तिमिर धरा से , ऐसी हो दीवाली ।
जहाँ असत्य की न गुंजाइश हो
न धन ,वैभव की नुमाइश हो
सब हो राममय ,न हार ,न पराजय
हर गांव अयोध्या, हर नदी गंगा
न करे कोई जाति ,धर्म पर दंगा
तब रामराज्य हो ,स्वराज्य हो
अखंड भारत में काम के बिना
न कोई हाथ हो खाली ।
मिटे तिमिर धरा से , ऐसी हो दीवाली ।
न वाणी में कटाक्ष हो
शासक न करता पक्षपात हो
न ढोंग,न स्वांग ,न अंधविश्वास हो
ज्ञान की बात हो
विज्ञान की चमत्कार हो ।
साहित्य का समागम हो
नैतिकता का पाठ हो
हर दिल में संवेदना हो
किसी की चोट से आहत हो
बुद्ध, महावीर की अहिंसा की नीति हो
जन कल्याण में सिंहासन - महलों का त्याग हो
मानवता के लिए गांधी का बलिदान हो
दशरथ मांझी की तरह जिद्दी
सम्राट अशोक की तरह हृदय विशाल हो
रुदन -क्रंदन ,आपदा -विपदा में
न कोई पीटे ताली -थाली ।
मिटे तिमिर धरा से , ऐसी हो दीवाली ।
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