पर्व त्योहार के बाद दुराचरण !
पर्व त्योहार में लोगों के आचरण,व्यवहार, मानवीय गुण देखने को मिलता है।मानो हृदय परिवर्तन हो जाता है और यह एक अच्छा संकेत है।भले ही देवी देवताओं के कोपभाजन का भय क्यों न हो ? आम जन यही गुण देखकर खुलकर दान ,चंदा देते हैं और लोगों को यहीं गुण देखकर संतोष होता है कि कुछ अपनी आमदनी के हिस्से धर्माचरण में देते हैं लेकिन पर्व त्योहार खत्म होते ही प्रतिमा स्थल पर बैठे रहे के बावजूद लोग पंडाल में ही जुआ खेलने लगते हैं। शराब पीने लगते हैं और चंदे के पैसे से पिकनिक मनाने लगाते हैं। प्रतिमा विसर्जन के समय अधिकांश लोग नशे में धुत ,अश्लील गीतों पर थिरकते हैं। आखिर क्यों? कल तक आंखें तरेरकर पूजा करने वाले पूजा के बाद नशे में आंखें लाल करने से क्यों नहीं डरते हैं? शरीर को स्थिर कर ध्यान लगाने वाले अब क्यों हिल डोल रहे हैं? ऐसे हरकतों से जाहिर होता है कि ऐसे लोगों को डर केवल देवी देवताओं के प्रकोप से है न की समाज से।जो लोग आस्था के नाम पर दान देते हैं, उनके दिलों पर क्या गुजरती है ? सोचना चाहिए।यही कारण है कि लोग अब पूजा पाठ को पाखंड ,ढोंग करार देने लगे हैं।अब सवाल है कि आखिर सनातन धर्म को खतरा किससे है? कौन इसके दुश्मन है?
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