मान - सम्मान, प्रतिष्ठा का वहम ! - प्रसिद्ध यादव।
लोग इस वहम में जीते रहते हैं कि उन्हें समाज में, परिवार में, रिश्तेदार में बड़ी प्रतिष्ठा है ।यह वहम हकीकत तब तक बना रहता है, जब तक आप कुछ बोलने की साहस नहीं करते हैं, अनर्थ को भी चुपचाप देखते रह जाते हैं।यानी यह समझौतावादी प्रतिष्ठा, नेक इंसान के ढोंग में जीते हैं। इससे लाख गुना वो इंसान अच्छा होता है जो, झूठे,मक्कार के पोल खोल देने की साहस रखता हो।इसकी कीमत आपको चुकानी पड़ती है, यदा कदा आपको इन्सल्ट भी किया जा सकता है लेकिन इसकी परवाह नहीं करना चाहिए क्योंकि हम दूसरों के इशारों पर नाचने वाले नहीं,खुद की मर्जी से चलने वाले हैं। रिश्तेदारों में सबसे अधिक प्रतिष्ठा पैसों वालों की होती है ,चाहे वो सोलह दूना आठ क्यों न हो? वो पैसा काली कमाई से क्यों न बनाई हो?इसी घमंड में हर किसी को अपने जूती के निचे रखना चाहता है। ऐसे लोगों से दो - दो हाथ कीजिए।अगर सारा अक्खड़ न टूट गया तो फिर कोई कहे। झूठ की रेत पर खड़े रहने वाले काफी कमजोर होता है और एक ही झटके में जमींदोज़ हो जाता है।जब भी आप जुर्म के खिलाफ, शोषण के ,तानाशाही के, भ्रष्टाचार के, अमानवीय व्यवहार के खिलाफ मुँह खोलेंगे तब आपके प्रतिष्ठित होने का वहन टूट जाएगा। आपके खिलाफ चौतरफा हमले होंगें, निंदा,मनगढ़ंत दुष्प्रचार होंगे लेकिन इससे विचलित होने की जरूरत नहीं है बल्कि दुगने बल के साथ प्रहार करने की जरूरत है।मुँह छुपाकर रहने से अच्छा जंगे मैदान में रहें।
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