प्रेस दर्पण ,दीपक की जगह पूर्वाग्रहों से ग्रसित ।-प्रसिद्ध यादव।
राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर बधाई!
आज प्रेस की स्वतंत्रता मुद्दा नहीं रह गया, बल्कि यह पूर्वाग्रहों से ग्रसित हो गया है।यह मुद्दा हो गया है। मीडिया के कई स्वरूप हैं।प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, इंटरनेट मीडिया, फोक मीडिया। प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के स्वामित्व पूंजीपतियों के हाथ में है ।यह मीडिया अब सत्ता द्वारा पोषित है।देश के अरबों ,खरबों रुपये इस पर लुटाए जा रहे हैं।नतीजा , आज खबर सरकार के पक्ष में प्रसारित होती हैं। टीवी चैनलों पर कौन सी मुद्दे पर डिबेट होगी ,यह सरकार तय करती है। खबरों की प्रमुखता सरकार की नियंत्रण में हो गयी।पित्त पत्रकारिता का दौड़ है।खबरें बिकती हैं,खबरें छपे नही या प्रमुखता से न दिखे,इसकी भी कीमत मिलती है।मीडिया हाउस सरकार की इशारे पर नाचती है। यह जनता की आवाज न बनकर सरकार की भोंपू बन गयी है।सरकारी पक्ष मीडिया रख रही है।पत्रकार कौन लोग हैं?उनकी गुणवत्ता क्या है?किसी भी मीडिया में पत्रकारों को रखने का क्या मापदंड है?पत्रकारों का स्वरूप क्या हो?अच्छे पत्रकार के लिए महाभारत के इन पत्रों के अनुरूप होना चाहिये।नारद-भ्रमणशील और बेवाकी से किसी भी बातों को कहने वाला।युधिष्ठिर-सत्यनिष्ठ, भीम-साहसी,अर्जुन-खबरों की परख चिड़ियों की आंख की तरह।खोजी पत्रकारिता का अभाव,खबरों की सच्चाई से दूरी चिंता का बिषय है।अब मीडिया से लोगों का भरोसा उठते जा रहा है,चिंता का बिषय है।मीडिया द्वारा भी अंधविश्वास, पाखण्ड की खबरें प्रमुखता भी दिखाई जाती है। फॉलो अप खबरें गायब हो गया है। अखबारों में आलेख राजनेताओं के भाषण के अंश या राजनेताओं द्वारा प्रकाशित हो रही है।ये सभी पेड न्यूज हो गए हैं।टीवी चैनलों पर मुर्गे लड़ाई जाती है। हिन्दू मुस्लिम यहां भी हर डिबेट में होता है। पत्रकार अब ब्लैकमेल करने लगे हैं।किसी में कुछ कमी दिखाकर उससे पैसे ऐंठे जाते हैं।पत्रकारिता में एक खास वर्ग का दबदबा है बाकी हाशिये पर हैं।फोक मीडिया में नाटक,गीतों आदि द्वारा लोगों को जागरूक किया जाता है लेकिन अब यह भी सरकारी वित्त से पोषित होने के कारण इनके भी कंटेंट बदल गए हैं। आम जन अब मीडिया की खबरों से कन्फ्यूज रहते हैं कि वाकई में सच्चाई क्या है? बिना तथ्यों के खबरें बन जाती है।
मीडिया को समाज का दर्पण एवं दीपक दोनों माना जाता है। इनमें जो समाचार मीडिया है, चाहे वे समाचारपत्र हो या समाचार चैनल, उन्हें मूलतः समाज का दर्पण माना जाता है। दर्पण का काम है समतल दर्पण का तरह काम करना ताकि वह समाज की हू-ब-हू तस्वीर समाज के सामने पेश कर सकें। परंतु कभी-कभी निहित स्वार्थों के कारण ये समाचार मीडिया समतल दर्पण का जगह उत्तल या अवतल दर्पण का तरह काम करने लग जाते हैं। इससे समाज की उल्टी, अवास्तविक, काल्पनिक एवं विकृत तस्वीर भी सामने आ जाती है।
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