जीते जी बस स्मारक बनाना बाकी रह गया है। -प्रसिद्ध यादव।
कोई कुछ नहीं बोलेगा।यहां बोलना सख़्त मना है।हुजूर जो चाहें वो करें।लोगों को सिर्फ तालियां बजाना है।
राष्ट्र के नींव का महत्व ।
अब तो बड़बोले लोग कहने में शर्म नहीं करते कि 75 सालों में कुछ हुआ ही नहीं, हद है। अब योजनाओं के नाम प्रधानमंत्री श्री के नाम से होने लगा है । पहले किसी महापुरुषों के नाम पर नामकरण होता था। अपने चहेतों के नामकरण के लिए डबल मीनिंग द्विअर्थी शब्दों का प्रयोग होने लगा है और कुछ तो सीधे सीधे जीते जी अपने नाम पर।नीव किसी भी ईमारत या देश के लिये महत्वपूर्ण होता है।भले ये दिखाई न दे,लेकिन इसकी महत्ता को नकारा नहीं जा सकता है।मकान खंडहर भी हो जाये,लेकिन नीव सुरक्षित रहती है।अब इसमें नीव का क्या दोष?रहनेवाले समुचित रख-रखाव नही किया।सुख - सुविधा भोगा और छोड़ दिया उसे अपने रहमोकरम पे।किसी राष्ट्र के साथ भी यही होता है।राष्ट्र निर्माण में किसान,मजदूर,शिक्षक,अभियंता ,वैज्ञानिक, लेखक,कवि,नेता,उद्योगपति,व्यापारी आदि सभी अपने-अपने हिसाब से जीवन यापन करते हैं और राष्ट्र के निर्माण में अपना योगदान देते हैं।अगर कोई देश गुलाम हो जाता है तब सबसे अहम भूमिका वहां के देश के गुलामी से मुक्ति देनेवाले योद्धा का हो जाता है।वीरों का,सपूतों का हो जाता है।आजादी की जंग में लोग राष्ट्रियता से ओत-प्रोत हो जाते हैं।वहां भ्रष्टाचार जैसे अनैतिक काम नही होते।लोग अपने लहू और जान देना जानते हैं।हाँ, कुछ देश के गद्दारों और मुखबिरों से इनकार नही किया जा सकता है।आजादी मिलते हीं देश के इन नीवों को भुला दिया जाता है।लोगों को चरमसुख ,परमानंद की भूख जगाने लगती है।जीवन विलासितापूर्ण और आरामदायक होने लगती है।तब शुरू होता है अनैतिक,गैरकानूनी काम।इससे किसी न किसी का गला और पेट कटता है और दूसरों के पास धन,लक्ष्मी की ढेर लग जाती है।शुरू होती है असमानता,भेद -भाव,एक गहरी खाई।नतीजा ,अराजकता की स्थिति उतपन्न होती है, नक्सलवाद, हिंसा,चोरी आदि।अगर सचमुच,राष्ट्र के ओत-प्रोत होकर काम हो तब असन्तोष की बात कहां आती है?राष्ट्र जितना सबल होगा,नागरिक भी उतने हीं सबल होंगे।राष्ट्र के नारे लगाने से केवल देशभक्ति की जज्वा नही आती,बल्कि हमें अपने क्रिया-कलाप से दिखाना होगा।मकान खण्डहर न बन जाये,उससे पहले मरम्मती होना जरूरी है।
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