हाय रे ठंढ़ ! - प्रसिद्ध यादव।
डीएम कमिश्नर में ठंढ़ की नूरा कुश्ती ! अंपायर नीतिवान !
ठंढ़ भी अमीरी गरीबी देखकर अपना कहर बरपाता है। जिसके माथे पर छत नहीं है, तन पर कपड़े नहीं है, खाने को ठिकाने नहीं है, उसे ठंढ़ पहले आगोश में ले रही है। अमीरों के पास ठंढ़ नहीं फटकती है ।घर में ब्लोअर , गीज़र, रजाई ,घर से बाहर निकलने पर गाड़ी में ब्लोअर ,ऑफिस में ब्लोअर .. ठंढ़ में गर्मी का मजा और गर्मी में ठंढ़ का मजा । लाखों खर्च कर के मीडिया में चेहरा चमकाने वाले नेताजी से गरीबों के लिए मुँह से आह भी नहीं निकलता है। गरीबी से बाहर आंकड़ों में दिख रहा है, जमीन पर कुछ और दिख रहा है।इस ठंढ़ में कमाऊ व्यक्ति, नॉकरी पेश वाले , किसान, मजदूर, व्यवसायी, फुटकर विक्रेता आदि की मजबूरी है। चुनावी नेताजी को ठंढ नहीं लगती है।नेताजी जनता को ढूंढ रहे हैं, जनता नदारद ।काफी प्रतीक्षा के बाद जनता जनार्दन की दर्शन परसन होती है। 5 साल की बदला है।नेताजी के स्टाफ भी नहीं पहुंच रहे हैं इसलिए नेताजी को देरी हो रही है नही तो इनका सूर्योदय किसी सुदूर गांव में जनता के पास होती ।नेताजी चल रहे हैं बाएं तो जनता दाएं। जनप्रतिनिधि अलाव जलाने के नाम पर मुंह में दही जमाये हुए हैं।भले मकर संक्रांति बीत चुका है। इधर पाठक और चंद्रशेखर में ठंढ कुश्ती प्रतियोगिता हो रही है।डीएम कमिश्नर को 6 महीना जेल भेजने की धमकी दे रहे हैं। ठंढ़ का असली कहर यही है।
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