कुर्सी तंत्र ! बेमिसाल, अद्भुत ,अनोखा,अनुपम ,अखंड सौभाग्य!- प्रसिद्ध यादव।


  

मजा दोनो तरफ से है।चाहे करवट जिधर मारो !जा ये भाजपा !राजद !

राजतंत्र, लोकतंत्र दुनिया देखी ,लेकिन कुर्सी तंत्र देखने के लिए बिहार आना होगा। बिहार में कुछ वर्षों से  प्रजातांत्रिक तरीके से कुर्सी तंत्र कायम है । विधायकों की संख्या भले ही राज्य में तीसरे पायदान पर है लेकिन हर समय बहुमत में रहती है। कुर्सी तंत्र में कौन पक्ष और कौन विपक्ष यह मायने नहीं रखता है। जिधर हाथ किया उधर हाथ लड्डूए पर पड़ता है। इसमें कुर्सी तंत्र की कोई दोष नहीं है। कोई बल ,छल से यह नहीं हो रहा है यह दोनों बड़ी पार्टियों की बोकापन से हो रहा है। कुर्सी तंत्र को पता है कि भाजपा राजद दोनों सौतन है तो क्यों न फेरा फेरि दोनों से मजा लिया जाए और दोनों से ले रहा है। आम आदमी के यह सब चाल चलन  देखकर होश खराब है। कितनी बार तलाक हुई और कितनी बार तीनों में गठबंधन ?याद भी नहीं। करीब 19 साल में एक बार गलती से मांझी के हाथ में पतवार मिल गया था और कुर्सी तंत्र के आगोश से बाहर हो गए तो कुर्सी खींच ली गई।  कुर्सी तंत्र में नैतिकता, अंतरात्मा को तिलांजलि देनी पड़ती है। कुर्सी तंत्र जल्द ही एक खेमा से असहज हो जाते हैं।यही आरोप लगता है राजद पर ।भाजपा में घर वापसी पर दीप प्रज्वलित किया जाता है। भाजपा से भय खाकर भागते हैं राजद में।यहां पीएम के चांस लेने आये थे लेकिन सीएम भी खतरे में था। साहेब के करवट बदलते ही जंगलराज पार्ट 2 मंगलराज पार्ट 2 में बदल जाता है, चमत्कार हो जाता है। जनादेश गुलाटी मारने के लिए नहीं मिलता है लेकिन बिहार में गुलटिये मरा रहा है। दूल्हा वही बाराती बदल जाता है।

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