भिखारी ठाकुर के अनुसार -लीप पोत के कई लीं साफा , तब लागल पंडित के दफा।" -डॉ सकलदेव सिंह -

 मनुष्य और प्रकृति ही  इस जगत का निर्माता और निर्देशक है। प्रकृति की गोद में मनुष्य ने अपने विवेक से  विज्ञान की छत्रछाया में सब कुछ  शोध कर  इस संसार में बसने वाले ( प्रकृति वस्तुओं को छोड़कर,) सभी वस्तुओं का निर्माण किया है। अक्षर का ज्ञान मानव ने ही किया है।जब अक्षर ( क, ख...........A,B.......) का खोज मानव ने किया तो  भगवान,ईश्वर का निर्माण मनुष्य ने ही किया है क्योंकि कल्पना के  आधार पर मनुष्य  (अर्जक) ही मूर्ति का निर्माण कर्ता है  क्योंकि यही  अक्षरश  सत्य है। सच्चाई भी है "सत्य परेशान हो सकता है, पराजित नहीं।"   विश्व स्तरीय  भोजपुरी भाषा के विद्वान भिखारी ठाकुर के शब्दों में ," लीप पोत के कई लीं साफा ,

तब लागल पंडित के दफा।" 


कहने का मुख्य तात्पर्य यह है कि   इस धरती पर  अर्जक वर्ग ही  सारी  वस्तुओं का निर्माणकर्ता,शोधकर्ता और उपार्जन कर्ता है कोई और नहीं। जब  अर्जक कोई वस्तु का निर्माण कर देता है तभी  काल्पनिक चरित्र के धर्म के ठिकेदार उस धर्म का दर दिखाकर हावी हो जाता है और अर्जक धर्म के नाम पर डर जाता है।

सदियों से वही होते आया है ,हों भी रहा है और अगर हम 95% वर्ग( कमेरा वर्ग/ अर्जक वर्ग) सजग नहीं होंगे,आपस में  मधुमक्खी के समान  नहीं रहेंगे तो वो धूर्त हमें  इसी मकड़जाल में फंसा कर  उलझाए रखेगा।

आज भी वही हो रहा है  साकेत बौद्ध विहार था,इतिहास साक्षी है जिसे  ध्वस्त कर काल्पनिक राम का मंदिर  अर्जक ने  निर्माण किया  यानी भिखारी ठाकुर के शब्दों में लीप पोत के साफ किया और तब   पंडित के दफा यानी ढोंगी बाबाओं द्वारा उसमे "प्राण प्रतिष्ठा"   पत्थर की मूर्ति में किया  गया। हाय रे!  हमारे देश के शिक्षित समाज, तनिक शर्म नहीं  आता  इस  झूठ को बात को मानने के लिए। हम सभी शिक्षितों को तो मुठ्ठी भर पानी में नाक रगड़ कर मर जाना चाहिए,ताकि  हमारे आने वाले  बंसज यह नहीं पूछे कि जब गलत  था तो क्यों मान लिए।

  कमेरा वर्ग/ अर्जक वर्ग अभी भी मौका है   हम  अपने आप को परखें। हम जिस दिन मंदिर को लात मारकर कलम पकड़ लेंगे वो हमारा तलवे चाटना शुरू कर देगा और अपने आप को गौरवान्वित महसूस करेगा कि आज कुछ काम किया है।

डा सकलदेव सिंह।

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